Book Title: Jain Dharm Vikas Book 02 Ank 02
Author(s): Lakshmichand Premchand Shah
Publisher: Bhogilal Sankalchand Sheth

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Page 4
________________ જન ધર્મ વિકાસ. માનસંગ અને ભેજરાજરે, કેશરીયા લાલ. भी२, ण, भने सारे सास, ઉપર મઝાના મગરે, કેશરીયા લાલ. પ્રગટ-૭ શોભા બહુ ને સંઘ ચાલીયે રે લોલ, मामुछ साभा जयरे, शरीय दास. સંવત અઢારસે અઢોરે લાલ, भास थैतरने सोमवा२२, शरीया प्रगट-८. દર્શન કરાવ્યા સંઘને રે લોલ, તેથી હરખ ઉરમાં ન માયરે, કેશરીયા લાલ. કર જોડી રામવિજય કવી ભણે રે લોલ, ગુણ ગેડીજીના ગાયરે, કેશરીયા લાલ. પ્રગટ ॥श्री आदिनाथ चरित्र पद्य ॥ (जैनाचार्य श्रीजयसिंहसूरीजी तरफथी मळेलु) ( is Y४ ७थी अनुसंधान ) इमि कह कर आकाश समाही, अंतर ध्यान हुआ क्षण मांही । यह चरित्र निज हृदय विचारो , निज परलोकहि तुरत सुधारो॥ स्वयं बुद्ध की बात सुन, महाबल नृपति सुजाना । धर्मास्तिक निजमानकर, कीना धर्म बखान ॥ जबहि नृपतिमन उपजा ज्ञाना, झूठ सांच सब तुरत पिछाना। खयंबुद्ध अति हर्षित होई, धन्य धर्म नृप जाना सोई ।। सुनहुं नृपति तुम कुलके माही, हुए एक कुरु चंद्रा हाई। तिन कर पुत्र हरिस्चंद्र नामा, ते नृप अतीहिं नीच दुष्कामा ॥ दया विहीन हिंसक अति घोरा, महा भयंकर पापी चोरा । तिन नृप राज्य किया बहु काला, पूर्वोपार्जीत पुन्य रसाला ॥ पूर्व पुन्य क्षय होवन लागा, धातु रोग नृपतिकर लागा। भोगत दुख बहुत वह भारी, सुख कर वस्तु हुइ सुख कारी ॥ विषम दुख भोगतवह राजा, देह त्याग निज लोक विराजा । तिन कर पुत्र हुआ अति धर्मी, नीतिवान और शुभ कर्मी ॥

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