Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 02 Author(s): Haribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation View full book textPage 6
________________ साहित्य प्रकाशन के अन्तर्गत् जैनधर्म की कहानियाँ भाग १ से १९ तक एवं लघु जिनवाणी संग्रह : अनुपम संग्रह, चौबीस तीर्थंकर महापुराण (हिन्दी - गुजराती), पाहुड़ दोहा-भव्यामृत शतक - आत्मसाधना सूत्र, विराग सरिता तथा लघुतत्त्वस्फोट, अपराध क्षणभर का (कॉमिक्स) - इसप्रकार २७ पुष्पों में लगभग ५ लाख से अधिक प्रतियाँ प्रकाशित होकर पूरे विश्व में धार्मिक संस्कार सिंचन का कार्य कर रही हैं। जैनधर्म की कहानियाँ भाग २ के प्रस्तुत संस्करण में पुराण पुरुषों के भवभवान्तरों के आधार पर वैराग्य एवं ज्ञानबर्द्धक १५ कहानियाँ दी जा रही हैं। ये कथाएँ ब्र. हरिलालजी द्वारा लिखी गई हैं, हम उन सभी के हृदय से आभारी हैं, इनका सम्पादन पण्डित रमेशचंद जैन शास्त्री, जयपुर ने किया है। अतः हम उनके भी आभारी हैं। आशा है इन पौराणिक, सैद्धान्तिक एवं बोधकथाओं से पाठकगण अवश्य ही बोध प्राप्त कर सन्मार्ग पर चलकर अपना जीवन सफल करेंगे। आगामी योजना के अर्न्तगत् शीघ्र ही जैनधर्म की कहानियाँ भाग २० प्रकाशित करने जा रहे हैं। साहित्य प्रकाशन फण्ड, आजीवन ग्रन्थमाला शिरोमणि संरक्षक, परमसंरक्षक एवं संरक्षक सदस्यों के रूप में जिन दातार महानुभावों का सहयोग मिला है, हम उन सबका भी हार्दिक आभार प्रकट करते हैं, आशा करते हैं कि भविष्य में भी सभी इसी प्रकार सहयोग प्रदान करते रहेंगे। विनीतः मोतीलाल जैन अध्यक्ष प्रेमचन्द जैन साहित्य प्रकाशन प्रमुख आवश्यक सूचना पुस्तक प्राप्ति अथवा सहयोग हेतु राशि ड्राफ्ट द्वारा "अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन, खैरागढ़" के नाम से भेजें । हमारा बैंक खाता स्टेट बैंक आफ इण्डिया की खैरागढ़ शाखा में है। (4)Page Navigation
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