Book Title: Jain Dharm Ka Parichay
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 11
________________ सिद्ध होगा / गुरु की आवश्यकता इसलिए है कि इसमें अनेक स्थलों पर संक्षिप्त वाक्यों में प्रश्नोत्तर समाविष्ट हैं, विस्तृत विवेचना का संक्षेप है और अनेक पदार्थो का संकेतमात्र है / संक्षेप में तत्त्व चिन्तन और सन्मार्ग साधना के लिए इसमें से अनेक पदार्थ मिल सकेंगे / ___ अभ्यास पद्धतिः- प्रकरण का अंश पढ़कर, संक्षिप्त संकेतों में उसकी धारणा करके बिना पुस्तक देखे मुख से, बोलकर उन पदार्थो का पुनः अवधारण करना / तत्पश्चात् अगले अन्य नवीन अंशो की वाचना करके पदार्थो के संकेतों की शृंखला जोड़ते रहना चाहिए / छात्र वही पदार्थ तैयार कर सकें इसका एक सरल उपाय यह है कि शिक्षक चार या पांच पदार्थो-तत्त्वों को समझाकर बारी-बारी विद्यार्थियों को क्रम-अक्रम से उन पदार्थो को पूछकर रटाएँ और संकेत स्थानों का संकलन करके धारणा कराए और बार बार समझाकर, कण्ठस्थ करवाकर तैयार करवाए / अंत में प्रकरण की समाप्ति पर सारे प्रकरण का उपसंहार करें / दूसरे दिन नये अध्ययन से पहले एकाध बार संक्षेप में आवृत्ति (Revision) कराकर आगे बढ़ा दिया जाय / आधुनिक मानस वाले विद्यालयों और महाविद्यालययों के विद्यार्थियों में धार्मिक संस्कार-सिंचन तथा चारित्र निर्माण के निमित्त हमारी आग्रहपूर्ण विनंती के फलस्वरूप समय देकर अनवरत श्रम से विद्वद्वर्य परम पूज्य आचार्यदेवश्री विजय भुवनभानुसूरीश्वरजी ने प्रस्तुत 'जैन धर्म का परिचय' पाठ्यपुस्तक लिख कर हम पर महान् अनुग्रह किया है /

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