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लौकिकता से हटकर आध्यात्मिकता की ओर मुड़ जाता है, भाव निर्मल एवं विशुद्ध होते हैं तथा मन भी एकाग्र हो जाता है।
विभिन्न ग्रन्थों के मङ्गलाचरण
वंदित्तु सव्वसिद्धे धुवमचलमणोवमं गई पत्ते । वोच्छामि समयपाहुडमिणमो सुयकेवलीभणियं ॥
( समयसार )
नित्य, शुद्ध अनुपम, सिद्धगति को प्राप्त, सर्व सिद्धों को नमन करके मैं श्रुतकेवली कथित समयप्राभृत को कहूँगा ।
णिम्मलझाणपरिट्ठिया कम्मकलंक डहेवि ।
अप्पा लद्धउ जेण परू ते परमप्प णवेवि ॥
( योगसार )
जिन्होंने शुद्ध ध्यान में स्थित होकर कर्मों के मल को जला डाला है तथा उत्कृष्ट परमात्म पद को पा लिया है उन सिद्ध परमात्माओं को नमस्कार करता हूँ।
झाणग्गिदड़ ढकम्मे णिम्मलविसुद्धसब्भावे । णमिऊण परमसिद्धे सु तच्चसारं पवोच्छामि ॥
(श्री देवसेनाचार्य तत्त्वसार)
ध्यान रूपी आग से कर्मों को जलाने वाले व निर्मल शुद्ध निज स्वभाव को प्राप्त करने वाले सिद्ध परमात्माओं को नमन करके तत्त्वसार को कहूँगा ।
एस सुरासुरमणुसिंदवंदिदं धोदघाइकम्ममलं । पणमामि वड्ढमाणं तित्थं धम्मस्स कत्तारं ॥
(प्रवचनसार)
आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं कि मैं सुर, असुर एवं मनुष्यों से वन्दित, चार घातिया मल से रहित संसार समुद्र से तारने वाले भगवान वर्द्धमान को नमस्कार करता हूँ।
सुर-असुर-इन्द्र-नरेन्द्र-वंदित कर्ममल निर्मलकरन । वृषतीर्थ के करतार श्री वर्द्धमान जिन शत-शत नमन || सुध्यान में लवलीन हो, जब घातिया चारों हने। सर्वज्ञ बोध विरागता को, पा लया तब आपने ॥