________________
जैन धर्म को केन्द्र में रखकर जो तुलना की गयी है, उसका एक मात्र कारण उस धारा मे हमारा निकट परिचय ही है, अन्य कोई अभिनिवेश नही।
जैन, बौद्ध और गीता की माधना का मूल केन्द्र चैत्तसिक समत्व या चेतना की निगकुल दशा है । अतः सर्वप्रथम ममन्त्र योग की चर्चा की गई है । इसके बाद त्रिविध साधना मार्ग और 5 विद्या (मिथ्यान्व) का विवेचन है । उसके पश्चात् सम्यग्दर्शन (श्रद्धा) सभ्यग्ज्ञान (ज्ञानयोग) मम्यक् चारित्र (कर्म योग। और मम्यक् नप का ममत्व की सिद्धि के माधनों के रूप में विवेचन किया गया है। अन्त में प्रवत्ति और निवृत्ति की विभिन्न परिप्रेक्ष्यों में चर्चा की गर ह रि यह दिखाया गया है कि नोनो बाग में उनका क्या और किम रूप में स्थान है।
प्रस्तुत तुलनात्मक अध्ययन में हमे जिन ग्रन्थों और ग्रन्थकारो का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में महयोग मिला, उन सबके प्रति हम हृदय से आभारी है ।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के अध्यक्ष एव भारतीय धर्म दर्शन के गम्भीर विद्वान हा० गमशकर जी मिश्र ने इस पुस्तक का प्राक्कथन लिखने की कृपा की एतदर्थ हम उनके भी आभारी है।
प्राकृत भारती मम्थान के सचिव श्री देवेन्द्रराज मेहता के भी हम अत्यन्त आभारी है, जिनके महयोग मे यह प्रकाशन सम्भव हो मका है। महावीर प्रेस ने जिस तत्परता
और सुन्दरता गे यह कार्य मम्पन्न किया। उसके लिए उनके प्रति आभार व्यक्त करना हमारा कर्तव्य है । अन्त मे हम पार्श्वनाथ विगाश्रम परिवार के डॉ० हरिहर सिंह, श्री मोहन लालजा, यी मगर प्रकाश मेहता तथा शोध छात्र श्री रविशंकर मिश्र, श्री अरुण कुमार सिंह, श्री भिखारो गम यादव और श्री विजयकुमार जैन के भी आभारी है, जिनसे विविधरूपो मे महायता प्राप्त होती रही है । वाराणसी, १५ अगस्त १९८२,
सागरमल न