Book Title: Jain Bauddh aur Gita ka Sadhna Marg
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 123
________________ १०४ जेन, बोद्ध और गीता का साधना मार्ग अकुशल धर्मों को तपा डालना है । इम सन्दर्भ में बुद्ध और निर्ग्रन्थ उपासक सिंह सेना - पति का सम्वाद पर्याप्त प्रकाश डालता है । बुद्ध कहते है "हे सिंह, एक पर्याय ऐसा है जिसमे मत्यवादी मनुष्य मुझे तपस्वी कह सके ।" वह पर्याय कौनसा है ? हे सिंह, मैं कहता हूँ कि पापकारक अकुशल धर्मो को तपा डाला जाय। जिसके पापकारक अकुशल धर्म गल गये, नष्ट हो गये, फिर उत्पन्न नही होने, उसे मैं प्रकार बौद्ध साधना में भी जैन-माघना के समान आत्मा की अकुशल चित्तवृत्तियों या पाप वामनाओं के क्षीण करने के लिए तप स्वीकृत रहा है । तपस्वी कहता हूँ । ४ इस जैन - साधना में तप का वर्गीकरण जैन आचार-प्रणाली में तप के बाह्य (शारीरिक) और आभ्यन्तर (मानसिक) ऐसे दो भेद है ।' इन दोनों के भी छह-छह भेद है । (१) बाह्य तप - १. अनशन, २. ऊनोदरी, ३. भिक्षाचर्या, ४. रम- परित्याग ५. कायक्लेश और ६. मंलीनता । ( २ ) आभ्यन्तर तप - १. प्रायश्चित्त, २ विनय, ३. वैयावृत्य, ४. स्वाध्याय, ५. ध्यान और ६. व्युत्मगं । ין शारीरिक या बाह्य तप के भेद १. अनशन - आहार के त्याग को अनशन कहते है । यह दो प्रकार का है - एक निति समयावधि के लिए किया हुआ आहार-त्याग, जो एक दिन में लगा कर छह मास तक का होता है । दूसरा जीवन पर्यन्त के लिए किया हुआ आहार त्याग । जीवनपर्यन्त के लिए आहार त्याग की अनिवार्य शर्त यह है कि उस अवधि मे मृत्यु की आकाक्षा नही होनी चाहिए । आचार्य पूज्यपाद के अनुसार आहार त्याग का उद्देश्य आत्म-संयम, आसक्ति में कमी करना, ध्यान, ज्ञानार्जन और कर्मो की निर्जग है, न कि सांसारिक उद्देश्यों की पूति । 3 अनशन मे मात्र देह-दण्ड नही है, वरन् आध्यात्मिक गुणों की उपलब्धि का उद्देश्य निहित है । स्थानाग सूत्र में आहार ग्रहण करने के और आहार त्याग के छह छह कारण बताये गये है । उसमें भूख को पीडा की निवृत्ति, मेवा, ईर्यापथ, संयमनिर्वाहार्थ, धर्मचिन्तार्थ और प्राणरक्षार्थ ही आहार 'ग्रहण' करने की अनुमति है । (२) ऊनोबरी ( अजमोदर्य) - इस तप में आहार विषयक कुछ स्थितियाँ या गत निश्चित की जाती है । इसके चार प्रकार है - १. आहार की मात्रा से कुछ कम खाना, यह द्रव्य-नोदरी तप हैं । २. भिक्षा के लिए, आहार के लिए कोई स्थान निश्चित कर वही से मिली भिक्षा लेना, यह क्षेत्रऊनोदरी तप है । ३. किसी निश्चित समय पर ४. बुद्धलीलासारसंग्रह, पृ० २८० - २८१ २. वही, २०१८ - २८ १. उत्तराध्ययन ३०।७ ३. सर्वार्थसिद्धि, ९।१९

Loading...

Page Navigation
1 ... 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164