Book Title: Jain Bauddh aur Gita ka Sadhna Marg
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 139
________________ निवृत्तिमार्ग और प्रवृत्तिमार्ग निवृत्तिमार्ग एवं प्रवत्तिमार्ग का विकास आचार-दर्शन के क्षेत्र मे प्रवृत्ति और निवृत्ति का प्रश्न सदैव ही गम्भीर विचार का विषय रहा है। आचरण के क्षेत्र मे ही अनैकिता को मम्भावना रहती है, क्रिया मे ही बन्धन की क्षमता होती है। इमलिए कहा गया कि कर्म मे बन्धन होता है । प्रश्न उठता है कि यदि कर्म अथवा आचरण ही बन्धन का कारण है तो फिर क्यो न इसे त्याग कर निष्क्रियता का जीवन अपनाया जाये। बम, इसी विचार के मूल मे निवृत्ति वादी अथवा नैष्कर्म्यवादी मन्याममार्ग का बोज है । निष्पाप जीवन जीने की उमग मे ही निवृत्तिवादी परम्पग मनुष्य को कर्मक्षेत्र में दूर निर्जन वनखण्ड एवं गिरिगुफाओ मे ले गयी, जहाँ यथासम्भव निष्कम जीवन सुलभतापूर्वक बिताया जा सके । दूमरी ओर जिन लोगो ने कर्मक्षेत्र में भागना तो नही चाहा, लेकिन पाप के भय एवं भावी मुग्वद जीवन की कल्पना से अपने को मुक्त नहीं रख सके उन्होने पाप-निवृत्ति एव जीवन की मगलकामना के लिए किमी ऐमी अदृश्य मत्ता में विश्वाम किया जो उन्हे आचरित पाप से मुक्त कर मके और जीवन मे मुग्व-मुविधाओ की उपलब्धि कगये । इतना ही नहीं, उन्होने उम मत्ता को प्रसन्न करने के लिए अनेक विधि-विधानो का निर्माण कर लिया और यही मे प्रवृत्ति मार्ग या कर्मकाण्ड की परम्पग का उद्भव हुआ। भारतीय आचार-दर्शन के इतिहाम का पूर्वार्ध प्रमुखत इन दोनो निवर्तक एव प्रवर्तक धर्मो के उद्भव, विकास और मघर्ष का इतिहास है, जबकि उत्तरार्ध इनके समन्वय का इतिहास है। जैन, बौद्ध एव गीता के आचार-दर्शनो का विकाम इन दोनो परम्पराओ के मघर्ष-युग के अन्तिम चरण मे हुआ है। इन्होने इस मघर्ष को मिटाने के हेतु ममन्वय की नई दिशा दी । जैन एव बौद्ध विचार-परम्पराएं यद्यपि निवर्तक धर्म को ही शाग्वाये थी, तथापि उन्होने अपने अन्दर प्रवर्तक धर्म के कुछ तत्त्वो का ममावेश किया और उन्हे नई परिभापाय प्रदान की। लेकिन गीता तो समन्वय के विचार को लेकर ही आगे आयी थी। गीता में अनामक्तियोग के द्वारा प्रवृत्ति और निवृत्ति का सुमेल कराने का प्रयास है। ___ निवृत्ति-प्रवृत्ति के विभिन्न अर्थ-निवृत्ति एव प्रवृत्ति शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त होते रहे है । साधारणतया निवृत्ति का अर्थ है अलग होना और प्रवृत्ति का अर्थ है प्रवृत्त होना या लगना । लेकिन इन अर्थों को लाक्षणिक रूप में लेते हुए प्रवृत्ति और

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