Book Title: Jain Bauddh aur Gita ka Sadhna Marg
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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सम्यक् तप तथा योग-मार्ग
मामान्य रूप में जैन आगमों में साघना का त्रिविध मार्ग प्रतिपादित है, लेकिन प्राचीन आगमों में एक चतुविध मार्ग का भी वर्णन मिलता है। उत्तराध्ययन और दर्शनपाहुड में चतुविध मार्ग का वर्णन है ।' माघना का चौथा अग 'सम्यक् तप' कहा गया है । जैसे गीता मे ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग के साथ साथ ध्यानयोग का भी निरूपण है, वैसे ही जैनपरम्परा में सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र के साथ साथ सम्यक् तप का भी उल्लेख है । परवर्ती परम्पराओं में ध्यानयोग का अन्तर्भाव कर्मयोग में और सम्यक् तप का अन्तर्भाव सम्यक् चारित्र में हो गया । लेकिन प्राचीन युग मे जैनपरम्परा मे मम्यक् तप का, बौद्ध परम्परा में समाधि मार्ग का तथा गीता मे ध्यानयोग का स्वतंत्र स्थान रहा है । अत तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि में यहा सम्यक् तप का विवेचन स्वतंत्र रूप मे किया जा रहा है ।
साधारणतः यह मान लिया जाता है कि जैन परम्परा में ध्यानमार्ग या समाधिमार्ग का विधान नहीं है, लेकिन यह धारणा भ्रान्त ही है। जिस प्रकार योग परम्परा मे अष्टागयोग का विधान है, उसी प्रकार जैन परम्परा में इस योगमार्ग का विधान द्वादशाग रूप मे हुआ है । इसे ही सम्पक् तप का मार्ग कहा जाता है। जैन परम्परा के मम्यक् तप की गीता के ध्यानयोग तथा बौद्ध परम्परा के समाधिमार्ग से बहुत कुछ समानता है, जिम पर हम अगले पृष्ठों में विचार करेंगे ।
नैतिक जीवन एवं तप-तपस्यामय जीवन एवं नैतिक जीवन परस्पर मापेक्ष पद है। त्याग या तपस्या के बिना नैतिक जीवन की कल्पना अपूर्ण है । तप नैतिक जीवन का ओज है, शक्ति है । तप-शून्य नैतिकता खोखली है, तप नैतिकता की आत्मा है । नैतिकता का विशाल प्रासाद तपस्या की ठोस बुनियाद पर स्थित है ।
नैतिक जीवन की मात्रा प्रणाली, चाहे उसका विकास पूर्व में हुआ हो या पश्चिम में, हमेशा तप मे ओतप्रोत रही है। नैतिकता की सैद्धान्तिक व्याख्या चाहे 'तप' के अभाव में सम्भव हो, लेकिन नैतिक जीवन तप के अभाव में सम्भव नही ।
वैयक्तिक सुखो की उपलब्धि में ही
नैतिक व्याख्या का निम्नतम सिद्धान्त भी, जो नैतिक साधना की इतिश्री मान लेता है, तप- शून्य नही हो मकता । यह सिद्धान्त उम मनोवैज्ञानिक तथ्य को स्वीकार करके चलता है कि वैयक्तिक जीवन मे भी इच्छाओं का संघर्ष चलता रहता है और बुद्धि उनमे से किमी एक को चुनती हैं, जिसकी मन्तुष्टि १. उत्तराध्ययन, २८ २, ३, ३५, दर्शनपाहुड, ३२

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