Book Title: Isibhasiyam Suttaim
Author(s): Manoharmuni
Publisher: SuDharm Gyanmandir Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 242
________________ - 1. “२०८ इसि-भासियाई - यदि मूर्ख जनता विचारकों का अपमान करती है तो बेचारक के लिये वह दया की ही पान है। जब वालक की आँखों का जाला दूर करने के लिये डॉक्टर आपरेशन करना है तो बालक दद के मारे चौबता है और उन्हें गालियां भी देता है किन्तु डॉक्टर के मन में बालक के प्रति रोप नहीं आता। ठीक इसी प्रकार जर परंपरा और रूटियों के जाले आंखों में बढ़ जाते है और साल देखने की शक्ति लुप्त होती है तब विचारक तीखे तम्तर से ऑपरेशन करता है तो अज्ञानी नीखता है, चिलाता है, उन्हें गालियां भी देना है। परोक्ष में ही नहीं की कमी प्रत्यक्ष में भी उन पर ईर्ष्या और घृणा के शोरे कराता है।। निन्दा और अपमान के कइये बूंट उतारते रामय विचारक मोचेगा ये बेचारे अंधकार में भटक रहे हैं। इनकी आत्मा पर अज्ञान का आवरण है फिर भी ये केवल गालियां देकर ही संतोष मान रहे हैं, लाठी और ईडे से तो नहीं पीट रहे हैं। यही इनकी मेहरबानी है। टीका:-बालः खलु पंडित प्रसव परुष देर तडित इत्यादे यावत् प्राय वदनि न दंडेन यष्ट्या चा लेटना वा मुध्या वा बाला कपालेन वाऽभिहन्ति तर्जयति तात्ति परिताडत्ति उद्वापयति च्यापादयति । मूर्ख इत्यादि पूर्ववत् । गताः । बाले य पंडितं दंडेण वा लहिणा वा लेटुणा वा मुट्ठिणा वा कवालेण वा अभिहणेज्जा एवं चेव णधरं अगण तरेणं सत्थ जातेणं अग्ण यरं सरीर जायं अच्छिदई वा विचिंछदइ वा मुक्खसभाषा हि बालाण किंचि बालेहिंतो ण विजति' तं पंडिसे सम्म सहेजा, खमेशा तितिकाजा अहियासेजा। अर्थ:- यदि अज्ञानी किसी प्रज्ञाशीन पर अन्य उपरोक प्रकारों से प्रहार करता है, तब भी पंडित गोचे ये केवल दंडादि से प्रहार करके ही रह जाते है किन्तु किन्हीं शस्त्रादि से मेरे शरीर का छेदन नहीं करता और वह सोचे अज्ञानी मूर्ख स्वभाव वाले होते हैं । अतः पंडित उनके प्रहारों को सम्यक् प्रकार से सह। જે અજ્ઞાની માણસ કોઈપણ બુદ્ધિમાન માણસ પર કોઈપણ કારણે ઉપર કહેવા મુજબ પ્રહાર કરે તો તત્વજ્ઞ માણસે એવો વિચાર કરવો ઘટે છે કે મૂરખ લોકો સેટથી જ મારે છે પાણુ શસ્ત્રો ( જીવલેણ પ્રહાર) કરીને મારા શરીરનું છેદન કરતા તે નથી, અને અજ્ઞાની તદ્દન મુરખ જ હોય છે એમ રામજી તે પ્રહારોનું સહન કરવું. जब क्रान्ति आगे बढ़ती है और परंपरा की दीवारें बहने लगती है तब परंपरा के पुजारी चीख उठते हैं। क्योंकि उनकी दुकानदारी छट रही है और जब परंपरा की नींव डगमगाती है तो बड़ी बड़ी शक्तियां भी क्षुब्ध हो उठती है और उनके संप्रदायवाद की सुरा पिये हुए मतांध अनुयायी नही की रक्षा के लिये लाठियां लेकर निकल पड़ते हैं और क्रान्तिकारी विचारकों पर अविचारकों की रोषमरी लाठियां बरस पड़ती हैं। किन्तु उन दालना और तर्जना के क्षणों में भी विचारक अपने विचार सत्य से एक इंच पीछे नहीं उठता। साथ ही वह अपनी मन की शान्ति भी भंग नहीं होने देता। वह सोचता है इनके सिंहासुन डोल गये हैं, बेचारों की रोटी और रोजी लिनी जा रही है, फिर उनका बोलना अस्वाभाविक भी नहीं है, फिर भी ये बेचारे केवल दंड ले प्रहार करके ही रह जाते हैं, शस्त्र प्रहार तो नहीं करते, यही गनीमत हैं। ये ही उदात्त विचार विचारक की आत्मा को लाठी बरसनेवाले पर भी क्षमा बरसाने के लिये प्रेरित करते हैं। टीका:-बालश्नति संयोजने चेदर्थे वा पंडित दंडनेत्यादि यावद्वापयेत तत् पंडित इत्यादि यावद् उद्वापयति न केनचित्र जातेन किंचिच्छरीरजातं शरीरभागमाछिनत्ति घा विच्छिनति वा । मूख इत्यादि पूर्ववत् । गतार्थः । बालेय पंडितं अण्णतरेण सत्थजातेणं अगणतरं शरीरजायं अच्छिन्देजा वा विच्छिन्देजा वा, ते पंडिर बहु मण्णेजाः "दिट्ठा मे एस बाले अपणतरेणं सत्यज्ञातेणं अन्छिन्दति वा विच्छिन्दति वा, णो जीवितातो ववरोवेति । मुक्खसभावा हि बाला ण किंचि वालेहिंतो ण चिजति' तं पंडिप सम्म सहेजा खमेचा तितिक्खेजा अहियासेजा। अर्थ:-यदि अज्ञानी व्यक्ति किसी पंडित पुल के किसी अवयव का किसी शस्त्रादि से छेदन करता है भेदन करता है तब भी पंडित उनको बहुत समझे। वह सोचे मैंने देखा है वह पाल जीव किसी शस्त्रादि से छेदन भेदन ही करता है किन्तु मेरा जीवन तो रामाप्त नहीं करता । अज्ञानी का जीवन मुखता से भरा रहता है । अज्ञानी जो न करे वहीं कम है। अतः साधक उराको सम्यक् प्रकार से सहन करे। ६ अण्णास सत्था म अदिविहि.

Loading...

Page Navigation
1 ... 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334