Book Title: Isibhasiyam Suttaim
Author(s): Manoharmuni
Publisher: SuDharm Gyanmandir Mumbai

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Page 312
________________ ૨૮ इसि भासियाई ये सातों गाथाएं पन्द्रहवें अध्ययन में कमशः ग्यारह से सत्रह के क्रम पर स्थित हैं। वहीं पर विस्तृतार्थ के साथ इनका विचार भी किया गया है । जं हंता जं विद्यजेति जं विसं वाण भुंजति | जंणं गेहति वा बाल णूणमत्थि ततो भयं ॥ ११ ॥ अर्थः- जिसे हिंसक छोड़ देता है, जिसको जो नहीं खाता है और जिस सर्प को जी पकड़ता नहीं हैं, उसे उसको भय अवश्य है । गुजराती भाषान्तरः જેને હા !?નાર (પ્રભુ કે કોરી દે છે. જે રન (જે માણસ ) ભક્ષણ કરતો નથી અને જે સાપને ( भाणुस ) पछतो नथी ( ते भाणुसने ) ते वस्तुनी भीड़ (लय ) रह्या वगर न रहे. अशुभ प्रवृत्ति की कभी उपेक्षा नहीं करना चाहिये। रोग की उपेक्षा की जाए तो वह एक दिन उग्ररूप ले लेता है और फिर उसका प्रतिकार दुःशक्य हो जाता है। विष बेल को समाप्त करना है तो उसकी जड़ को समाप्त करना होगा । हिंसक व्यक्ति जिसको मारता नहीं है, किन्तु यदि हिंसक की हिंसा वृत्ति नहीं मिटाई गई तो संभव है किसी अवसर को पाकर उसकी सोई हुई हिंसावृत्ति में उभार आ सकता है और वह फिर से हिंसा करने के लिये आतुर हो जाए । घर में विष रखा हुआ है, यद्यपि खाया नहीं है पर उसे अलग नहीं किया; तो संभव है भूल से उसका उपयोग हो सकता है और वह अपनी मारकशक्ति का उपयोग कर देगा। दवा के बदले भूल में टिंक्चर पीने वाले अनेक पाये गये हैं दुसरी ओर घर के एक कोने में सांप बैठा है तो रात्रि को सारा घर साँपों का घर लगेगा । अथवा छुपा हुआ सर्प एक दिन प्रहार कर सकता है। अतः सर्प को जब तक दूर न किया जाय तब तक उसका भय बना रहेगा। इन तीनों वस्तुओं का सर्वेथा परिहार आवश्यक है, इसी प्रकार पाप की प्रवृत्ति का समूल पारेहार करना चाहिये । टीका: -- पं हन्ता अभियोक्ता विचर्जयति, यविषं नशे न भुनक्ति, यं वा स्याकं गृह्णति नास्ति तसो भयम् । 1 टीकाकार भिन्न मत रखते हैं उनके अभिप्राय से जिसे मारनेवाला = अभियोक्ता छोड़ देता है । जिस विष को मनुष्य खाता नहीं है और जिस सर्प को पकड़ लेता है उससे उस व्यक्ति को भय नहीं रहता । टीकाकार का आशय भी ठीक है किन्तु 'गुणमत्थि' में एक न और कहाँ से लाएंगे ? | धावतं सरसं नीरं सच्छं दार्दि सिंगिणं । दोसभी विचक्षैति पावमेवं विवज्जए ॥ १२ ॥ अर्थ::- स्वच्छ मधुर जल की ओर दोड़नेवाले डाढ़ और सींगवाले पशुओं का दोष भीरु व्यक्ति वर्जन कर देते हैं । ऐसे ही पाप को रोकना चाहिए। गुजराती भाषान्तरः સ્વચ્છ મીઠા પાણી તરફ દોડી જનાર દાઢ અને સીંગવાળા પશુઓને ડરપોક માથુસ બીએ છે અને તેથી જ છેડેથી ાય છે. તેવી જ રીતે પાપને પશુ દુરથી જ (અટકાવવા માટે ) વર્જ કરવા જોઈ એ. पिपासा कुल सर्प या सींगवाले पशु जब पानी की ओर दौड़ते हैं तब उनके बीच नहीं पड़ना चाहिये। क्योंकि वे अपने बाधक के ऊपर प्रहार कर सकते हैं, इसलिये दोष भीस व्यक्ति उनको दूर से ही छोड़ देता है। इसी प्रकार विचार वाले साधक पापों को छोड़ दें | पाप से दूर होने के लिये पहली शर्त है पाप को पाप माना जाए। दोष को दोष न मानना सबसे बड़ा दोष है। रोग को रोग न मानना सबसे बड़ा रोग है । क्षय केम्सर आदि बड़े रोग हैं, परन्तु उन पर काबू पाया जा सकता है, किन्तु जो रोग को जनता नहीं है या उसे स्वीकार नहीं करता उस रोगी का कोई इलाज नहीं है। इसी प्रकार पाप के प्रति उपेक्षा करनेवाला या उसे स्वीकार न करनेवाला एक नया पाप और करता है । पश्चिमी विचारक ल्यूथर ने कहा है The recognition of sin is the beginning of salvation ल्यूथर पाप की स्वीकृति मुक्ति का श्रीगणेश है। पाप पाप चाहे वह किसी भी रूप में आये और वह हमारे मन की पवित्रता को उसी प्रकार हर लेता है। जैसे नदिशों की उछलती हुई लहरें तट की हरियाली को ।

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