Book Title: Isibhasiyam Suttaim
Author(s): Manoharmuni
Publisher: SuDharm Gyanmandir Mumbai

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Page 321
________________ | २८७ पैंतालीसवाँ अध्ययन सारदं या जलं सुद्ध पुण्णं वा ससिमंडलं । जच्च-मणि अपई वा थिरं वा मेतिणी तलं ॥ ३१ ॥ साभाषियगुणोपेतं भासते जिणसासणं । ससीतारापच्छिणं सारदं वा णभंगणं ॥ ३२ ॥ अर्थ-शरद अरनुका जल शुद्ध होता है पूर्णचन्द्र मंगल रम्य है। प्रकाश करती हुई मणि और विस्मृत मेदिनी तल स्थिर है। इसी प्रकार म्वाभाविक गुणों से युक्त जिनशासन शोभित होता है। जैसे चन्द्र और तारागण से व्याप्त शारदीय नभोजन शोभित होता है। गुजराती भाषान्तर: શરઋતુનું પાણું ઘણું શુદ્ધ હોય છે. પૂર્ણચંદ્રમંડલ પણ ઘણું જ રમ્ય દેખાય છે. પ્રકાશથી ચળક્તા રો અને વિશાલ પૃથ્વીતલ પણ રિથર છે. જેમ ચમા અને નક્ષત્રગણુથી વ્યાસ શરઋતુમાં આકાશ શોભે છે તે જ પ્રમાણે કુદરતી ગુણોથી યુક્ત જનશાસન સુશોભિત છે. अतिर्षि जिनेन्द्र देव के शासन को विविध उपमाओं से उपमित करते हैं । जैसे शारदीय जल शुद्ध होता है और मणि चमकती स्थिर पृथ्वी विविध वन उपवन साग और उपखंडों से शोभित होती है । इसी प्रकार पीतरागदेव का शासन नय और प्रमाग से शोभित है। दुसरी गाथा में वीतराग क्षेत्र के शासन को चन्द्र और तारिकाओं से व्याप्त शरद के स्वच्छ गगन से उपमित किया गया है। प्रस्तुन गाथाएं अर्हतर्षि की काव्यात्मक प्रतिमा को अभिव्यक्त करती है। उसमें प्रकृति के मनोहर रूप के साथ वीतराग. देव के शासन को रखा गया है। शरद का शान्त नभांगन सरसवधा वर्षाचन्द्र और मनोहारि नक्षत्रों से शोभित होता है। इसी प्रकार दर्शनादि आत्मा के म्वाभविक गुणों से जिनेन्द्र प्रभु का शासन शोभित होता है। सवण्णुसासणं पप्प विण्णाणं पधियंभते। हिमत गिरि पप्पा तरुणं चारु वागमो ॥ ३३ ॥ सत्तं बुद्धी मती मेधा गंभीरत्तं च बढ़ती। ओसर्घ वा सुई कन्तं जुज्जर बलवीरियं ॥ ३४ ॥ अर्थ-जिसने सर्वज्ञ का शासन प्राप्त किया है, उस आत्मा का विज्ञान वैसा ही विकसित होता है जैसा कि हिमालय में पृक्ष का सौन्दर्य बढ़ जाता है और जैसे पवित्र और तेजपूर्ण औषधि से बल और वीर्य की वृद्धि होती है इसी प्रकार जिनेन्द्र देव के शासन से ) सत्व बुद्धि मत्ति मेधा और गांभीर्य की वृद्धि होती है। गुजराती भाषान्तर: જે માણસે સર્વસનું શાસન મેળવ્યું છે, તે આત્માનું વિજ્ઞાન પણ તેજ રીતે વિકાસ પામે છે, જેમ કે હિમાલયમાં વૃક્ષોની નિસર્ગસુંદર રમીયતા વધે છે અને જેમ પવિત્ર અને તેજ પૂર્ણ વિધિ (જડીબુટી) થી બલ અને વીર્યની વૃદ્ધિ થાય છે તેવી જ રીતે (જીવના શાસનથી) સત્વ, બુદ્ધિ, મતિ, મેધા અને ગાંભીર્યની વૃદ્ધિ થાય છે, सर्वज्ञ के शासन की एक महती विशेषता यह है कि उसमें ज्ञान के विकास का अवसर प्राप्त होता है वह इसलिये कि इसमें अंधविश्वास को अवकाश नहीं है और धर्म अंध विश्वासों में नहीं पलता । अंधविश्वास को धर्म कहना मुरा को अमृत बताना है । धर्म और अंधविश्वास दो अलग राह पर जानेवाली दो चीजें हैं। मैं तो कहूंगा धर्म का सबसे बड़ा प्रतिद्वन्द्वी कोई है तो अंधविश्वास ही । धर्म की पवित्र देह को दूषित किसी ने किया हो तो वह रंध विश्वास ही है। अंधविश्वास ने धर्म की रक्षा करने का ठेका अवश्य लिया था, पर बह रक्षक मूर्ख बन्दर जैसा था जिसने राजा के शरीर पर बैठी मक्खी को उड़ाने के लिये राजा को ही मार डाला। अंधविश्वास ने भी वही किया अश्रद्धा की मक्खी को उड़ाने के लिये तलवार से धर्म के टुकड़े कर दिये उसकी आत्मा को विदाकर के उसके शरीर से चिपका हुआ है। आगमवाणी मी बोलती हैपण्णासम्मिक्खिए धम्म तत्तं तत-विणिठियं ॥ ___ -उत्तरा० अ० २३. १. जन्ममाणि. २. आज साईस पृथवी को स्वधुरी पर घुमती दुई मानता है। जैनदर्शन के अनुसार दर वस्तु वपर्याय मे परिणमनशील है फिर भी जैन भूगोल पृथ्वी को स्थिर मानता है।

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