Book Title: Isibhasiyam Suttaim
Author(s): Manoharmuni
Publisher: SuDharm Gyanmandir Mumbai

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Page 285
________________ अडतीसवाँ अध्ययन પર पूर्व गाथा में दृष्टि बदलने की प्रेरणा दी गई है यदि दृष्टि बदल चुकी है बाह्य से हटकर अंतर की ओर मुड चुकी है तो साधक सत्य को पा चुका है। अब उसकी दृष्टि सम्यष्टि है । वह वस्तु के प्राणता का पारखी है। उसके हृदय में प्राणिमात्र के प्रति दया का निर्झर बह रहा है। उसकी साधना निदान = फलासफ रहित होती है। फिर उसकी समस्त शक्ति कर्मक्षय करने में प्रवृत्त हो जाती है' सात्थकं यवि आरंभ जाणेजा य णिरत्थकं । पाडिहत्थिस्स जो पतो तडं वातेति चारणो ॥ १८ ॥ अर्थः-- आरंभ सार्थक भी होता है और निरर्थक भी प्रति हस्ति के लिये हाथी कभी तट को तोड़ देता है । गुजराती भाषांतर : કાર્યની શરૂઆત સાર્થક (ફળદાયક ) પણ બને છે. અને નિરર્થક (ફ્ાયદાવગરનું ) પશુ બને છે. કેમકે પોતાના પ્રતિદ્વંદી (હરીફ્ ) હાથીને લીધે હાથી કિનારાને પણ તોડી નાંખે છે. जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये किया जानेवाला आरंभ सार्थक आरंभ है, दूसरे शब्दों में अर्थ दंड हैं, किन्तु मनोरंजन के लिये दूसरे का उत्पीवन निरर्थ हिंसा है-अनर्थक दंड है। उपेक्षा और प्रमाद के द्वारा होनेवाली हिंसा अनर्थ दण्ड हैं | साथ ही आवश्यकता से अधिक संग्रह भी अनर्थदंड के अन्तर्गत आता है । अहिंसा का उपासक श्रावक अर्थदंडों से नहीं बच सकता तो उसे अनर्थ दंड से अवश्य बचना चाहिये । गृहस्थ जीवन की जबाबदारी निभाते हुए श्रावको कभी कभी अन्याय के प्रतिकार के लिये आततायी को दंड देना पडता है । इस रूप में वह स्थूल हिंसा का समाश्रय लेता है फिर भी वह अपनी व्रत मर्यादा से पीछे नहीं हटता क्योंकि उसके मन में अहिंसा की भावधारा बह रही है । अतर्षि बता रहे हैं प्रति हस्ति विरोधी यूथ के आक्रमक हस्ति को हटाने के लिये हाथी कभी कभी अपने तट को तोड़ देता है । इसी प्रकार श्रावक भी अपने परिवार की रक्षा के लिये प्रतिकारात्मक हिंसा का आश्रय लेता है, श्रावक निरपराधी व्यक्तियों को द्वेष भुद्धि से मारने का प्रत्याख्यानी है । सापराध के लिये वह मुक्त है । यदि कोई उसके परिवार पर आक्रमण कर रहा है और वह कायर की भांति भगोडापन दिखाता है तो अपने कर्तव्य से भ्रष्ट होता | कायरता स्वयं एक पाप है । क्योंकि उसमें मानसिक हिंसा छिपी हुई है । कायर हिंसा नहीं करता है ऐसी बात नहीं है वह हिंसा कर सकता। चूहा बिल्ली को मार नहीं सकता तो क्या वह अहिंसक है ? कायर को मारना क्या मरना भी नहीं आता । जीवन के मैदान में बीर एक बार मरता है तो कायर अनेक बार मरता है । एक विचारक भी कहता है- Cowards die many times before their death the valiant taste death but once. जैनदर्शन में कायरता को स्थान नहीं है। फिर मी श्रावक को सहेतुक और निर्हेतुक आरंभ का विवेक तो रखना ही चाहिये और महारंभ से हटकर अल्पारंभपूर्वक जीवन जीने की कला सीखना चाहिये । टीका:- सार्थकमर्थसहितमिवारम्भं करणं निरर्थकं जानीयात् । यथा प्रतिद्दस्तिनं पश्यंस्तं घातयति वारणः । जस्स कजस्त जो जोगो साहेतुं जेण पचलो । कजं वज्जेति तं सव्वं कामी वा जग्ममुंडणं ॥ १९ ॥ अर्थः- जो जिस कार्य के लिये योग्य है वह उसी काम को करे, किन्तु जिस कार्य में जिसका विश्वास नहीं है वह उस कार्य को छोड देता है। जैसे कि कामी पुरुष नमत्व और मुण्डनत्व को छोड़ देता है । गुजराती भाषान्तर : भे માણસ કામ માટે લાયક છે તે તે જ કામ કરે, પરંતુ જે કામમાં જેનો વિશ્વાસ નથી તે તે કામને છોડી દે છે; જેમ કામાસક્ત માણુસ નચૈત્વ અને મુડનત્વને છોડી દે છે. जो व्यक्ति अपने बल और योग्यता के अनुरूप कार्य का चुनाव करता है वह उसमें सफल हो सकता है। हर व्यक्ति के मन में महत्वाकांक्षा होती हैं ऊर बडे बडे काम करना चाहता है। महत्वाकांक्षा रखें और महान काम भी करें, किन्तु प्रत्येक कार्य के प्रारंभ करने के पूर्व अपने आपको तोल लेना चाहिए। चल पडे तो परिणाम में निराशा ही प्राप्त होगी। हमारी महत्त्वाकांक्षाएं पत्थर उठाने की ताकत नहीं है और पहाड़ उठाने शक्ति से संतुलित हो । पहाड फिर पहले पत्थर उठाने १. असमीक्षिता किरणोपभोगाधिकत्वानितत्वार्थ सूत्र अ० ७

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