Book Title: Ishtopadesha
Author(s): Devnandi Maharaj, Shitalprasad, Champat Rai Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 24
________________ नमः सिद्धेभ्यः श्रीमत्पूज्यपादस्वामि-विरचित इष्टोपदेश श्रीपण्डित--आशाधरकृत संस्कृतटीका और भाषानुवाद सहित उत्थानिका टीकाकारका मंगलाचरण परमात्मानमानम्य, मुमुक्षुः स्वात्मसंविदे। इष्टोपदेशमाचष्टे, स्वशक्त्याशाधरः स्फुटम् ॥ तत्रादौ यो यद्गुणार्थी स तद्गुणोपेतं पुरुषविशेष नमस्करोतीति परमात्मगुणार्थी ग्रन्थकर्ता परमात्मानं नमस्करोति, तद्यथा जो जिस गुणको चाहनेवाला हुआ करता है, वह उस उस गुण सम्पन्न पुरुष विशेषको नमस्कार किया करता है। यह एक सामान्य सिद्धान्त है। परमात्माके गुणोंको चाहनेवाले ग्रन्थकार पूज्यपादस्वामी हैं, अतः सर्वप्रथम वे परमात्माको नमस्कार करते हैं । मूलग्रन्थकर्ताका मंगलाचरण श्लोक-यस्य स्वयं स्वभावाप्तिरभावे कृत्स्नकर्मणः । तस्मै संज्ञानरूपाय नमोऽस्तु परमात्मने ॥१॥ अन्वय-यस्य कृत्स्नकर्मणः अभावे स्वयं स्वभावाप्तिः तस्मै संज्ञानरूपाय परमात्मने नमः अस्तु। टीका-अस्तु भवतु । किं तन्नमः नमस्कारः । कस्मै, तस्मै परमात्मने । परमः 'अनाध्येयाप्रहेयातिशयत्वात्सकलसंसारिजीवेभ्यः उत्कृष्ट आत्मा चेतनः परमात्मा तस्मै । किंविशिष्टाय, संज्ञानरूपाय सम्यक्सकलार्थसाक्षात्कारित्वादितदत्यन्तसूक्ष्मत्वादीनामपि लाभात्कमहन्तृत्वादेरपि विकारस्य त्यागाच्च संपूर्ण ज्ञानं स्वपरावबोधस्तदेव रूपं यस्य तस्मै । एवमाराध्यस्वरूपमुक्त्वा तत्प्राप्त्युपायमाह । यस्याभत्कासौ स्वभावाप्तिः स्वभावस्य १. अनारोपि अप्रतिहत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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