Book Title: Isarsuri Virachit Lalitanga Charit apar nam Rasak Chudamani Author(s): H C Bhayani Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ [4] षट्पद कम्मि कीउ दासत्त सत्त हरिचंदि नीच-घरि कम्मि हणिउ हय कंस केसि चाणूर हरण हरि । कम्मि राम गय धाम सीय लक्खण वणि वासिय, कम्मि सीस दस वीस भुअह लंकेंस विणासीय । किया-कम्मि चंद सूरिज नडिय, भिडिय कम्मि भारथि सुहड, इम भणइ ईस दीसह दिसां, कोइ समथ वि ण कम्म भड ।।२७ गाथा जं विज्ज अपत्थासी, जमुत्तमो नीय-संगओ होइ । तं पुव्वकम्मजणियं, दुचिट्ठियं सयल जीवाणं ।।२८ अह अन्न-दिणे राया, जायाणंदो कुमार-गुण-तुट्ठो । दिसइ बहु-मुल्ल-हारं, कुमरस्स गले सुसिंगारं ॥२९ दाणं अत्थु पहाणं, कि कित्तिम-भूसणाण भारेण । इअ चिंतितो कुमरो, हार-च्चायं कुणइ सिग्धं ॥३० इय जाणिऊण तुरियं तुरियगईए स सज्जणो विजणं । गंतूण राय-पुरओ, सविसेसं विण्णवइ एवं ॥३१ पद्धडी छंद महाराय निसुणि विनतिय एग, ललियंग-कुमरवर-गय-विवेग । अइ-दाण-वसणि रत्तउ रसाल, विण -दाण गणइ सह आलमाल ॥३२ नवि जाणइ पत्तापत्त- भेउ,जं इच्छौं आवइ दिइ तेउ । विण-धण किम चल्लइ रज्जु-कज्ज, संसारिसु वल्लह अप्प कज्ज ॥३३ जं जीवह वल्लह होइ दव्व, किम किज्जइ वियरण तासु सव्व । अज्जिज्जिइ अणुदिणु महादुक्खि, ते मूढ न जाणइ जतनि रक्खि ॥३४॥ कुल विज्जा वाणि विवेग रूव, जीह विण नवि सलहइ कोइ भूव । सब-सरिस पुरिसजीह विण कहंति, जिणि अत्थि अणत्थ सुविलय जंति ॥३५ अइ-दाणिहिँ बलि घल्लिउ पयालि, अइ-माणिहिँ कौरव-खय अगालि । अइ-लोभिहिँ लंकापति-विणास, सुर-दाणव-पति पय नमइँ जास ॥३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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