Book Title: Indriya Parajay Shatak Author(s): Buddhulal Shravak Publisher: Nirnaysagar Press View full book textPage 9
________________ ( ४ ) कालमणंतं भुत्ता, अज्झवि मुत्तं न किं जुत्ता ॥ ९ ॥ तोटक छंद । विषयानिविषै पहिलें कल है । विषतें अति दारुण हू फल है ॥ चिरकालतें भोगत आतम है । नहिं छोड़ क्या यह लाजिम है ? ॥ ९ ॥ विसयरसासवमत्तो, जुत्ताजुत्तं न जाणई जीवो ॥ झूर कलणं पच्छा, पत्तो णरयं महाघेोरं ॥ १० ॥ दोहा । विषय विरस मदमें मतौ, भल अनभल न सुझाय । घोर शुभ्रमें जब परै, तब आतम बिललाय ॥ १० ॥ जह बिहुमपत्तो, कीडो कडुअंपि मण्णए महुरं || तह सिद्धिसुहपरुक्खा, संसारदुहं सुहं वित्ति ॥ ११ ॥ कटुक नीमकों कीट ज्यों, मधुर मान भख लेत । त्यों शिवसुखतें विमुख भवि, दुखहिं गिनत सुखखेत ॥ ११ ॥ अथिराण चंचलाण य, खण मित्त सुहंकराण पावाणं । दुग्गइणिबंधणाणं, विरमसु एआण भोगाणं ॥ १२ ॥ भोग निबंधक कुगतिके, महा पापके धाम । अथिर चपल छणसुखद ये, तजहु आतमाराम ॥ १२ ॥ १ चैन ।Page Navigation
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