Book Title: Indriya Parajay Shatak
Author(s): Buddhulal Shravak
Publisher: Nirnaysagar Press
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(२३) जिप्पंति सुहेणं वि य, हरिकरिसप्पाइणो महाकूरा। इक्कब्विय दुजेयो कामो कयसिवसुहविरामो॥७०॥
करि हेरि अहि अति कूर हू, सहजहिं लीजे जीत । शिवसुखबाधक काम रिपु, दुर्जय जानो मीत ॥ ७० ॥ विसमा विसयपिवासाअणाइभवभावणाइजीवाणं। अइदुजेयाणी इं-दियाणि तह चंचलं चित्तं ॥७१॥ जियको विषम विषयतृषा, भावन जगत अनादि । तैसहि चंचल चित्त है, दुर्जय इन्द्री आदिः ॥ ७१ ॥
कलिमल अरइ अ भुक्खी वाही दाहाइ विविह असुहाई। मरणंपि य विरहाइसु
संपज्जइ कामतवियाणं ॥७२॥ दाह व्याधि कलिमल अरति, बहु दुख इष्टवियोग। भूख मरण आदिक लहहिं, कामतप्त जो लोग ॥७२॥
पद्धतिका। पंचिंदियविसयपसंगरेसि मणवयणकाय ण वि संवरेसि। तं वाहिसि कत्ति य गलपएसि
जं अट्ठकम्म णवि णिजरेसि ॥७३॥ * १ हामी। २ सिंह। ३ सांप।

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