Book Title: Indriya Parajay Shatak
Author(s): Buddhulal Shravak
Publisher: Nirnaysagar Press

View full book text
Previous | Next

Page 30
________________ (२६) शिवमगगामी पुरुषकों, पांचों विषय सिवाय । नहीं और कछु जगतमें, जो ना जीत्यौ जाय ॥ ७ ॥ सविडंकुब्भडरूवा, दिट्ठा मोहेइ जा मणं इत्थी। आयहियं चिंतता, दूरयरेणं परिहरंति ॥७९॥ ___ तोटक। सविकार तियातन सोहत है। अवलोकत ही मन मोहत है। निजआतमतन्त्व विचारत हैं।वह दूरहित परिहारत हैं ७९ सचं सुअंपिसीलं, विण्णाणं तह तवंपि वेरग्गं । वचइ खणेण सव्वं, विसयविसेणंजईणंपि।।८०॥ दोहा। ब्रह्मचर्य श्रुत सत्यता, तप विज्ञान विराग । मुनि ढिगते हू विषयवश, जात निमिषमें भाग ॥८॥ रेजीवसमइविगप्पिय; निमेससुहलालसो कहं मूढ। सासयसुह-मसमतम,हारिसिससिसोअरंच जसं ८१ अरिल्ल। शशि सम मनहर सुजस, जासु जग अमल है। जा समान नहिं और, मेरु सौ अटल है ॥ ऐसे सुखकी हार, करत जिय बावरे । निज कल्पित निमिषीक, विषयके दाव रे ॥ ८१॥ पजलिओ विसयअग्गी, चरित्तसारं डहिज कसिणंपि।

Loading...

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38