Book Title: Indriya Parajay Shatak
Author(s): Buddhulal Shravak
Publisher: Nirnaysagar Press

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ (२५) दहइ गोसीस सिरिखंड छारक्कए। छगलगहण?मेरावणं विक्कए । कप्पतरु तोडि एरंड सो वावए। जुज्झि विसएहिं मणुअत्तणं हारए ॥ ७६ ॥ स्वल्प विषयके हेतु, वृथा नर जन्म गमावै । मानो भस्मी हेतु, अगर अरु तगर जलावै ॥ अथवा ते अजकाज, मनो गजराज विकावें। करि सुरतरु निरमूल, मनो एरण्ड लगावैं ॥७६ ॥ __ अनुष्टुप् । अद्ध्वं जीवियं णिचं, सिद्धिमग्गं वियाणिया । विणिअट्टिज भोगेसु, आउ परिमिअमप्पणो॥७७॥ दोहा। आयु अल्पजीवन अथिर, शिवसुख अक्षय जान । काम भोगतै अति विरत, नित प्रति रहु बुधिवान ७७ आर्या। सिवमग्गसंठिआणवि जह दुजेया जियाण पणविसया। तह अण्णं किं पि जए दुजेयं णत्थि सयलेवि ॥ ७॥ १ बकरा। २ करके।

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38