Book Title: Indriya Parajay Shatak
Author(s): Buddhulal Shravak
Publisher: Nirnaysagar Press

View full book text
Previous | Next

Page 32
________________ (२८) परै भवोदधिमें अकुलावें। अहो परमगुरु यों समझावै ॥ ८४ ॥ माइंदजाल चवला विसया जीवाण विजुते अ समा। खणदिट्ठा खणणट्ठा ता तेर्सि को हु पडिबंधो॥ ८५ ॥ विषय चपल चपला सम जानो। इन्द्रजालसे छलिया मानो ॥ पलमें प्रगटै पलहिं पलावै । सो कैसैंकरि रोके जावें ॥ ८५ ॥ सत्तु विसं पीसाओ बेआलो हुअवहोवि पज्झलिओ। तं ण कुणइ जं कुविया कुणंति रागाइणो देहे ॥ ८६ ॥ गैरल पिशाच शत्रु वेताला । प्रजुलित प्रबल अनलकी ज्वाला ॥ है सब कुपित देहिं दुख जोई। तौ रागादिक सम नहिं होई ॥ ८६ ॥ जो रागाईण वसे, वसंमि सो सयलदुक्खलक्खाणं। जस्स वसे रागाई, तस्स वसे सयलसुक्खाइं ॥७॥ १ विष ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 30 31 32 33 34 35 36 37 38