Book Title: Indriya Parajay Shatak
Author(s): Buddhulal Shravak
Publisher: Nirnaysagar Press

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ ( ३२ ) ते धन्य धन्य सन्नियमधारि । हौं दास करौं जिहि नमस्कारि ॥ ९८ ॥ किंबहुणा जइवंछसि, जीव तुमं सासयं सुहं अरुहं। तापियसु विसयविमुहो, संवेगरसायणं णिच॥१९॥ सोरठा। निरुज अखय सुख जीव, चाहै तो तज विषय नित । संवेगामृत पीव, सार कहा बहु वादमें ॥ ९९ ॥ अनुवादककी प्रार्थना।। इन्द्रिय चोर चलाक, चुरावत चारित ज्ञाना । तिनकों है यह ग्रंथ, शरद शशि सम भयवाना ॥ यों करि दृढ़ विश्वास, देश भाषामयकीन्हों। होहु सदा जयवंत, मोर यह यत्न नवीनों ॥ पढ़ें सुनै अनुभवें, स्वपरहितकारक जानी । पावहिं सो विसराम, होयकर दृढ़श्रद्धानी ॥ करहिं अमल निज चरित, सुपथ गहि आतम ज्ञानी। तो मम श्रम है सफल, लहै जय गुरुवरवानी ॥ मैं मति मन्द अजान, धरमको मरम न जानौं। शब्द अर्थ अरु उभय,-माहिं असमर्थ अजानौं । । अति उपयोगी ग्रंथ, देखि मति मोर लुभानी।.. गहहु-तजहु जिमि हंस, सुगुण अवगुण पय पानी ॥ [समाप्तोऽयं ग्रन्थः] १ अक्षय-अविनाशी।

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38