Book Title: Indriya Parajay Shatak
Author(s): Buddhulal Shravak
Publisher: Nirnaysagar Press
View full book text
________________
पत्ताय कामभोगा सुरेसु असुरेसु तह य मणुएसु॥ ण यजीव तुज्झ तित्ती जलणस्सव कट्ठणियरेण १३ काम भोग भोगे जिया, नर सुर असुरमँझार। . भयो तृप्त नहिं नेकु हू, काठ अनल उनहार ॥ १३ ॥
उपजाति । जहा य किंपागफला मणोरमा रसेण वण्णेण य भुंजमाणा। ते खुट्टए जीविय पञ्चमाणा एओवमा कामगुणा विवागे ॥ १४ ॥
चौपाई। फल किम्पाक रंग रस जैसो। खावत लगै मनोहर तैसो ॥ पचै ततच्छन प्राण नसावै । काम भोग तिमि फल उपजावै ॥ १४॥
_ अनुष्टुप् । सव्वं वीलविअंगीयं, सव्वं णटुं विडम्बणा। सव्वे आभरणाभारा, सव्वे कामा दुहावहा ॥१५॥
गाना मानो है बिललाना। नाटक नृत्य विडम्ब समाना॥ भूषण सकल भार सम जानो। काम भोग सब दुख सरधानो ॥ १५ ॥

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38