Book Title: Indriya Parajay Shatak
Author(s): Buddhulal Shravak
Publisher: Nirnaysagar Press

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Page 11
________________ आर्या। देविंदचक्कवट्टि-तणाइ रजाइ उत्तमा भोगा। पत्ताअणंत खुत्तो ण यहं तत्तिंगओ तेहिं ॥ १६ ॥ दोहा। सुरपति नरपति राज्य अरु, सरस भोगके कोष । भोगे बार अनन्त लगि, तऊँ न पायो तोष ॥ १६ ॥ संसारचकवाले सब्वेवि य पुग्गला मए बहुसो। आहारिया य परिणा-मिया यण य तेसु तित्तोऽहं१७ चक्रवालमें जगतके, पुदगल द्रव्य अशेष । खाय परिणवे बार बहु, लही तृप्ति ना लेश ॥१७॥ अनुष्टुप् । उवलेवो होइ भोगेसु अभोगी णोवलिप्पई । भोगी भमइ संसारे अभोगी विप्पमुच्चई ॥१८॥ तोटक। लिपटाय रहैं भव भोगनमें । वह भूरि भमै भव काननमें ॥ जिहिं रंचहु राग न भोगनको । पद पावत है वह सिद्धनको ॥ १८ ॥ अल्लोसुको य दो छुढा गोलया मट्रियामया। दोवि आवडिआ कूडे जो अल्लो तत्थ लग्गई१९॥ एवं लग्गंति दुम्मेहा जे णरा कामलालसा। विरत्ताओ ण लग्गंति जहा सुके य गोलए॥२०॥

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