Book Title: Indriya Parajay Shatak
Author(s): Buddhulal Shravak
Publisher: Nirnaysagar Press
View full book text
________________
(१६)
काव्यम् । असुइमुत्तमलपवाहरूवयं वंतपित्तवसमज्झफोफसं। मेअमंसबहुहड्डुकरंडयं चम्ममित्तपच्छाइयजुवइअंगयं ॥ ५० ॥
अरिल्ल। अशुचि मूत्र मल बहत, पित्त वान्ती भरी। नसैं वसा फोफसा, मेद मजा थरी ॥ मांस अस्थिकी मोट, चामसों बँकि रही। कामिनिकी इमि काय, घृणित अतिशय सही॥५०॥
इन्द्रवज्रा। मंसं इमं मुत्तपुरीसमीसं सिंघाण खेलाइअ णिज्झरं तं । एवं अणिचं किमिआण वासं पासं णराणं मइबाहिराणं ॥ ५१ ॥
अरिल्ल। आमिष मूत्र पुरीष, आदि मय जानिये। कफ श्लेषमको उद्गम, थान प्रमानिये ।। इमि तियको तन मलिन, अथिर कृमिवास है।
मानव जे मतिहीन, तिन्हें वह पास हैं ॥५१॥ १ कै, वमन । २ जाल।

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38