Book Title: Indriya Gyan
Author(s): Sandhyaben, Nilamben
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है आभार 'इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है' शास्त्र के जनक पू. भाई श्री लालचन्द्र भाई जी के प्रति आभार हे पूज्यवर! हे परम उपकारी ! 'इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है' – इस गुप्त रहस्य का उद्घाटन करके आप श्री ने - इन्द्रियज्ञान से भेदज्ञान कराके अतीन्द्रिय ज्ञान प्रकट करने की कोई अद्भुत अचूक विधि दर्शाई है। हे प्रभु! यदि आपश्री ने पर को जानने का (इन्द्रियज्ञान का) निषेध न कराया होता... तो हम भव्यों का उपयोग अंतर्मुख कैसे होता ? और उपयोग अंतर्मुख हुये बिना आत्मा का प्रत्यक्ष अनुभव कैसे होता ? और आत्मानुभव हुए बिना अतीन्द्रिय आनन्द की प्राप्ति कैसे होती ? भव का अन्त कैसे आता ? अतः हे भवान्तक! आप अतीन्द्रिय आनन्द के दाता हैं। मोक्ष प्रदाता हैं! आप श्री का अनन्त अनन्त उपकार है। इस युग में भव्यों के महाभाग्य से जिनशासन के नभ-मण्डल में एक महान प्रतापी युग पुरुष आत्मज्ञ संत परमपूज्य श्री कानजी स्वामी का उदय हुआ। इन्हीं पू. गुरुदेव श्री ने धर्मतीर्थ की स्थापना की! शुद्धात्मा के स्वरूप तथा मोक्षमार्ग की अनेक पहलुओं से विस्तुत स्पष्टता की। पू. गुरुदेव श्री द्वारा स्थापित-धर्मतीर्थ के आप अतिशय समर्थ सशक्त संरक्षक हैं। आप श्री ने तीर्थंकर भगवंतो से लेकर पू. गुरुदेव श्री द्वारा प्रतिपादित आगम-परमागमरूपी महासागर का मंथन करके अमृत निकाला और दो Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 300