Book Title: Hemsiddhi
Author(s): Vinod Kapashi
Publisher: Zaveri Foundation

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Page 44
________________ भवरोगार्चजन्तूनामगदङ्कारदर्शनः । निःश्रेयसश्रीरमणः श्रेयांसः श्रेयसेऽस्तु वः || १३ || विश्वोपकार की भूततीर्थक्कृत्कर्म निर्मितिः । सुरासुरनरैः पूज्यो वासुपूज्यः पुनातु वः ॥ १४ ॥ विमलस्वामिनो वाचः कतकक्षोदसोदराः । जयन्ति त्रिजगच्चेतोजलनैर्मल्यहेतवः ॥ १५ ॥ स्वयम्भूरमणस्पर्धिकरुणा रसवारिणा । अनन्तजिदनन्तां वः प्रयच्छतु सुखश्रियम् ॥ १६ ॥ कल्पद्मसधर्माणमिष्टप्राप्तौ शरीरिणाम् । चतुर्घाधर्मदेष्टारं धर्मनाथमुपास्महे ॥ १७ ॥ सुधासोदरवाग्ज्योत्स्ना निर्मळी कृतदिङ्मुखः । मृगलक्ष्मा तमः शान्त्यै शान्तिनाथजिनोऽस्तु वः ॥ १८ ॥ श्री कुन्थुनाथ भगवान् सनाथोऽतिशयर्द्धिभिः । सुरासुरनृनाथानामेकनाथोऽस्तु वः श्रिये ॥ १९ ॥ अरनाथः स भगवांश्चतुर्थाऽरनभोरविः । चतुर्थपुरुषार्थ श्री विलासं वितनोतु वः ॥ २० ॥ सुरासुरनराधीशमयूरनव वारिदम् । कमन्मूलने हस्तिमलं मल्लिमभिष्टुमः ॥ २१ ॥ जगन्महामोहनिद्राप्रत्यूष समयोपमम् । मुनिसुव्रतनाथस्य देशनावचनं स्तुमः ॥ २२ ॥ लुठन्तो नमतां मूर्ध्नि निर्मलीकार कारणम् । वारिप्लवा इव नमेः पान्तु पादनखांशवः || २३ || यदुवंशसमुद्रेन्दुः कर्मकक्षहुताशनः । अरिष्टनेमिर्भगवान् भूयाद्वोऽरिष्टनाशनः ॥ २४ ॥ कमठे धरणेन्द्रे च स्वोचितं कर्म कुर्वति । प्रभुस्तुल्यमनोवृत्तिः पार्श्वनाथः श्रियेऽस्तु वः ॥ २५ ॥ कृताऽपराधेऽपि जने कृपामन्थरतारयोः । . ईषद्वापादयोभद्र श्रीवीरजिनने त्रयोः ॥ २६ ॥ Jain Education International • For Private & Personal Use Only 42 www.jainelibrary.org

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