Book Title: Harivanshpuranam Purvarddham
Author(s): Darbarilal Nyayatirth
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 11
________________ (१०) अनेन सह संघोऽपि समस्तो गुरुवाक्यतः । दक्षिणापथदेशस्थपुन्नाटविषयं ययौ ॥ ४० ॥ अर्थात् उनके साथ सारा संघ भी गुरु आज्ञासे चला और दक्षिणापथके पुन्नाट प्रान्तको प्राप्त हुआ । इससे मालूम होता है कि कनड़ीके समान संस्कृत साहित्य में भी 'पुन्नाट' शब्दका पुन्नाट देश के अर्थ में व्यवहार होता था और दक्षिणापथमें श्रवणबेलगोलके आसपासके प्रान्तको ही पूर्व कालमें पुन्ना कहते थे जहाँ कि भद्रबाहुस्वामीका संघ पहुँचा था । अभिमानमेरु महाकवि पुष्पदन्तने अपने आदिपुराणके पाँचवें परिच्छेद में द्रविड़, गौड़, कर्नाट, वराट, पारस, पारियात्र आदि विविध देशों का उल्लेख करते हुए पुन्नाटका भी नाम लिया हैदविड- गउड- कण्णाड-बराडवि, पारस पारियाय- पुण्णाढवि । इससे मालूम होता है कि अपभ्रंश भाषाके लेखकोंके लिए भी पुन्नाट देश अपरिचित नहीं था । इस पुन्नाट देशके नामसे ही वहाँके मुनिसंघका नाम पुन्नाट संघ प्रसिद्ध हुआ होगा । देशों के नामको धारण करनेवाले और भी कई संघों को हम जानते हैं, जैसे कि द्रविड़ देशका संघ द्राविड़ संघ, मथुराका माथुर संघ, लाट-बागड़का लाड - बागड़ संघ । पुनाटकी राजधानी कित्तूर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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