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(२४) या सेनसंघ-पंचस्तूपगण कहा जा सकता है, उसी तरह विजयकीर्ति–अर्ककीर्तिको नन्दिसंघ-पुंनागवृक्षमूलगणका लिखा है।
३-पृथ्वीकोङ्गणि महाराजके दानपत्रके निम्नलिखित अंशको पढ़िए---
"...... श्रीमूलमूलशरणाभिनन्दितनन्दिसंघान्वय-एरेगित्तुर्नाम्नि गणे मूलिकल्गच्छे स्वच्छतरगुणकिरणततिप्रह्लादितसकललोकश्चन्द्र इवापरश्चन्द्रनन्दिनाम गुरुरासीत् । तस्य शिष्यः समस्तविबुधलोकपरिरक्षणक्षमात्मशक्तिः परमेश्वरलालनीयमहिमा कुमारवद्वितीयः कुमारनन्दिनामा मुनिपति-. रभवत् । तस्यान्तेवासी समधिगतसकलतत्त्वार्थसमर्पितबुधसार्थसंपत्संपादितकीर्तिः कीर्तिनन्द्याचार्यों नाम महामुनिः समजनि । तस्य प्रियशिष्यः शिष्यजनकमलाकरप्रबोधजनकः मिथ्याज्ञानसंततसनुतससन्मानात्तक( ? )सद्धर्मव्योमावभासनभास्करो विमलचन्द्राचार्यः समुदपादि । तस्य महर्षेधर्मोपदेशनया........."
__ इसका 'श्रीमूलमूलशरणाभिनन्दितनन्दिसंघान्वय-' पद स्पष्ट नहीं होता है । यह पाठ हमने निर्णयसागर प्रेसकी प्राचीन लेखमालाकी पहली जिल्दसे* उद्धृत किया है। जान पड़ता है कि दानपत्रके पढ़नेवाले या कापी करनेवालेने भूलसे 'गण' को 'शरण' लिख दिया है। 'श्रीमूलमूलगणाभिनन्दितनन्दि-:
* पृष्ठ ५५-५९
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