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पंचस्तूपान्वयके 'वृषभनन्दि ' नामक एक आचार्यका उल्लेख है * और उक्त शिलालेख शक संवत् ५७२ के लगभगका है । यह नाम भी आर्यनन्दिके ही समान है । अन्य देवसंघ आदिके मुनियोंके नामोंमें भी किसी एक नियमका पालन नहीं किया गया है। इस लिए पुंनागवृक्षमूलान्वयके नामोंके अन्तमें कीर्ति और श्रीमूलमूलगणके नामों के अन्तमें नन्दि या चन्द्र रहनमें हमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए।
श्रुतावतारके अनुसार गुहाओंमेंसे आनेवाले मुनि नन्दि संज्ञासे युक्त किये गये थे, तब पुंनागवृक्षमूलान्वयके और श्रीमूलमूलगणके साथ नन्दिसंघका सम्बन्ध कुछ समझमें नहीं आता है । इस विषयमें यही कहा जा सकता है कि वास्तवमें हमारे पास ऐसा कोई साधन ही नहीं है जिससे इस प्राचीन मुनिपरम्पराके विषयमें कोई अधिकारयुक्त फैसला दिया जा सके ।
द्राविडसंघ नन्दिसंघका भेद है पार्श्वनाथचरितके कर्ता सुप्रसिद्ध तार्किक वादिराजसूरि द्राविडसंघकी अरुङ्गल शाखाके आचार्य
* ममा( पश्च ? )स्तूपान्व...स कले... गद्गुरुः । ख्यातो वृषभनन्दीति तपोज्ञानाब्धिपारगः ।।
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