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थे और यह द्राविडसंघ या द्रमिलसंघ + नन्दिसंघका एक भेद था जैसा कि नगर ताल्लुकेके ३९ वें शिलालेखके इस पद्यसे मालूम होता है
श्रीमद्रमिलसंघेऽस्मिन्नन्दिसंघेऽस्त्यरुङ्गलः। ___ अन्वयो भाति योऽशेषशास्त्रवाराशिपारगः ॥
श्रवणबेलगोलके ४९३ वें कनडी शिलालेखमें श्रीपालदेवको भी नन्दिसंघके द्रमिलगणके अरुंगलान्वयका बतलाया है.
"आकुलतिलकङ्गे गुरुकुलमाद श्रीमद्रमिलगणद
नंदिसंघदरुङ्गलान्वयदाचार्याबलियेन्तेन्दोडे ।" अर्थात् श्रीपालदेव नन्दि-संघ-द्रमिलगणके अरुंगलान्ययमें हुए।
परन्तु स्वयं षादिराजसूरिने पार्श्वनाथचरितमें अपनी गुरुपरम्परा बतलाते हुए केवल नन्दिसंघका उल्लेख किया है-द्रविडसंघका नहीं
+ द्रमिल द्रविड़का ही पर्यायवाची शब्द है । स्वर्गीय डॉ० भाण्डारकरने अपने 'हिस्ट्री आफ दि डेक्कन' में इसका उल्लेख किया है । ( देखो उक्त ग्रन्थका मराठी अनुवाद पृष्ठ १६९)
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