________________
(३०) मूलगण ही आगे चलकर संक्षिप्त पुन्नाटसंघ नाममें परिणत हो गया होगा, तो कुछ अनुचित न होगा और ऐसी दशामें यापनीय, द्राविड़ और पुन्नाट ये तीनों संघ एक ही वृक्षमूलके तीन स्कन्ध समझे जाने चाहिए ।
इन संघोंका जैनाभासत्व __ अब रही, इनके जैनाभास कहलाये जानेकी बात । सो हमारी समझमें पुन्नागवृक्षमूलान्वय या नन्दिसंघभुक्त होनेपर भी इनमें जैनाभासत्व हो सकता है । जिस प्रकार वर्तमान भट्टारकोंको हम शिथिलाचारी भ्रष्ट या जैनाभास कहते हैं, यद्यपि ये भी अपनेको नन्दिसंघ बलात्कारगण और कुन्दकुन्दाचार्यान्वयभुक्त बतलाते हैं, उसी प्रकार दर्शनसारके कर्ता देवसेन द्रविडसंघ यापनीयसंघ आदिके मुनियों के आचार देखकर उन्हें जैनाभास कह सकते हैं।
इस विषयकी हमने अपने 'वनवासियों और चैत्यवासियोंके सम्प्रदाय' शीर्षक लेखमें विस्तृत चर्चा की है । संक्षेपमें यह कहा जा सकता है कि इन संघोंके साधु महन्तों या भट्टारकोंके ढंगपर मठों
और मन्दिरोंमें रहने लगे थे, राजसभाओंमें आने जाने लगे थे, इनके मन्दिरोंको जागीरें लगी हुई थीं जिनका ये प्रबन्ध करते थे और तिलतुषमात्र परिग्रह न रखने के आदर्शसे नीचे गिर गये थे।
__ भट्टाकलंकदेवके न्यायविनिश्चयपर-वादिराजसूरिकी एक टीका है जो 'न्यायविनिश्चयविवरण'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org