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सर्गके ३८ वें सर्गके ४७ वें श्लोकसे ३८ वें सर्गके ४४ वें श्लोकतकके ही पत्र हैं । यह मालूम न हो सका कि इसे कब और किस लेखकने लिखा था । परन्तु प्रति हालकी ही लिखी हुई मालूम होती है ।
इन तीनों प्रतियोंकी सहायतासे साहित्यरत्न पं० दरबारीलालजीने इस ग्रन्थका संशोधन सम्पादन किया है । प्रत्येक सर्गकी विस्तृत विषयसूची भी आपने तैयार कर दी है, जो ढूँढ खोज करनेवालोंके लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।
पद्मपुराण जैसे विशाल ग्रन्थको प्रकाशित करनेके बाद ही इस बृहद्ग्रन्थका जीर्णोद्धार करना इस ग्रन्थमालाकी शक्तिसे बाहर होता, यदि उस्मनाबादके सुप्रसिद्ध वकील और जिनवाणीभक्त श्रीयुत नेमीचन्दजी बालचन्दजी ठीक समयपर ७००) सात सौ रुपयोंकी सहायता न देते । आप इसके पहले भी ग्रन्थमालाको कई बार सहायता दे चुके हैं । इस दानके लिए ग्रन्थमालाकी प्रबन्धसमिति आपकी चिरकृतज्ञ रहेगी।
पाठक जानते होंगे कि इस ग्रन्थप्रकाशिनी संस्थाके पास बहुत ही कम पूँजी है। अब तक लगभग १५ हजार रुपया ही इसे समाजकी ओरसे मिला होगा और वह भी अबतक प्रकाशित हुए ३२ प्रन्थोंमें लग चुका है । संस्कृत-प्राकृत ग्रन्थोंकी विक्री इतनी कम होती है कि यदि हम पूर्वप्रकाशित
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