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(१८) गुणधर अन्तवाले नाम हमें नहीं मालूम और शायद इस प्रकारके नाम जिनके अन्तमें ये संज्ञायें हों बन भी नहीं सकते हैं । क्योंकि ये स्वयं सम्पूर्ण नाम हैं, बल्कि इन नामोंके कुछ आचार्य हुए भी हैं ।
आगे चलकर सिंह, नन्दि, सेन और देव नामके जो चार संघ प्रसिद्ध हुए हैं और जिनके विषयमें कविवर मंगराजने लिखा है कि अकलंकदेवके स्वर्गगत हो जाने पर यह संघभेद हुआ था x उन्हें पूर्वोक्त अर्हद्वलिआचार्यनिर्मित संघोंका ही स्थूलरूप समझना चाहिए जिनका कि श्रुतावतारमें जिक्र है ।
संघ, गण, गच्छ और बलि उक्त चार संघोंके भी आगे अनेक भेद और उपभेद हो गये हैं । यों तो संघ, गण, गच्छ, अन्वय आदि लगभग एकार्थवाची हैं और इस लिए मुनिसंघोंके लिए ये सभी शब्द यत्र तत्र व्यवहृत हुए हैं; परन्तु साधारणतः संघोंके भेदोंको गण और उपभेदोंको गच्छ कहनेकी परिपाटी देखी जाती है, जैसे नन्दिसंघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुन्दकुन्दान्वये, अथवा नन्दिसंघे देशीयगणे पुस्तकगच्छे कुन्दकुन्दान्वये आदि । अनेक स्थानोंमें संघोंको 'गण' कहा है, जैसे नन्दिगण, सेनगण, द्रमिलगण आदि ।
* भगवती आराधनाकी विनयोदया टीकाके कर्ताका नाम अपराजित और दोषप्राभृतके रचयिताका नाम गुणधर है जिसका कि उल्लेख श्रुतावतार ( ११५) में किया गया है ।
x देखो श्रवणबेलगोलाका १०८ वें नम्बरका शिलालेख ( जैनशिलालेख संग्रह पृष्ठ २०९-११)
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