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लिखा हुआ एक दानपत्र - प्रकाशित हुआ है, उसमें विमलचन्द्राचार्यको नन्दिसंघके 'एरेगित्तूर्' नामक गण और 'मूलिकल्' नामक गच्छका बतलाया है । अभीतक इन गण-गच्छोंका उल्लेख अन्यत्र नहीं मिला है।
ऊपर हमने कहा है कि नन्दि, सेन, सिंह और देव संघ ही अर्हदलिआचार्यनिर्मित पंचस्तूपान्वय आदि भेदोंके स्थूल या समयविकसित रूप हैं, इसे सिद्ध करनेके लिए हम पाठकोंके सम्मुख कुछ प्रमाण उपस्थित करते हैं
पंचस्तूप, पुंनागवृक्षमूल और श्रीमूलमूल १-सब जानते हैं कि आदिपुराणके कर्ता भगवज्जिनसेन सेनसंघके थे । उनके शिष्य गुणभद्राचार्यने अपने उत्तरपुराणमें लिखा है
श्रीमूलसंघवाराशौ मणीनामिव सार्चिषाम् ।
महापुरुषरत्नानां स्थानं सेनान्वयोऽजनि ।। अर्थात् मूलसंघरूपी समुद्रमें चमकती हुई मणियोंके तुल्य महापुरुषरत्नोंका स्थानभूत सेनान्वय ४ इस दानपत्रका कुछ अंश आगे उद्धृत किया गया है।
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