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कहीं कहीं संघोंको 'अन्वय' भी कहा है जैसे सेनान्वय । गच्छके समान 'बलि' भी गणकी शाखाको कहते हैं, जैसे देशीयगणकी एक शाखा इंगुलेश्वर बलिका और दूसरी शाखा हनसोगे बलिका उल्लेख श्रवणबेलगोलके १०५, १०८, १२९ और ७० वें शिलालेखोंमें पाया जाता है।
अभीतक गणोंमें बलात्कार गण, देशीय गण और कार गण इन तीन गणोंके और गच्छोंमें पुस्तक गच्छ, सरस्वती गच्छ, वक्र गच्छ, और तगरिले गच्छ इन तीन गच्छोंके उल्लेख मिले हैं | अरुंगलान्वय, श्रीपुरान्वय और दिण्डिगूर देशीय गणकी कोई स्थानीय शाखायें जान पड़ती हैं।
कोलातूर संघका श्रवणबेल्गोलके ४९६ वें शिलालेखमें और नविलूर या मयूरसंघका २७, २०७ और २१५ वें शिलालेखोंमें उल्लेख है । संभव है, ये भी देशीय गणकी कोई स्थानीय शाखा ही हों।
इंडियन एण्टिक्वेरी ( २।१५६-५९ ) में पृथ्वीकोङ्गणि महाराजका शक संवत् ६९८ का १-२ काणूरगण और तगरिलगच्छका उल्लेख श्रवणबेल्गोलके ५०० वें नम्बरके शिलालेखमें है । ३-देखो श्रवणबेल्गोलका २२० वाँ लेख । ४-लेख नं० ४९६ ।
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