Book Title: Harivanshpuranam Purvarddham
Author(s): Darbarilal Nyayatirth
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 16
________________ (१५) मतभेद इन संज्ञाओंके विषयमें कुछ मतभेद भी हैं, जिनका आचार्य इन्द्रनन्दिने 'अन्ये जगुः । कहकर उल्लेख किया है । कुछके मतसे जो गुहाओंसे आये थे, उन्हें 'नन्दि', जो अशोकवनसे आये थे उन्हें 'देव', जो पंचस्तूपोंसे आये थे उन्हें 'सेन', जो सेमरके नीचेसे आये थे उन्हें 'वीर' और जो नागकेसर वक्षोंके नीचेसे आये थे उन्हें · भद्र ' संज्ञा दी गई । कुछके मतसे गुहानिवासी 'नन्दि', अशोकवननिवासी · देव ', पंचस्तूपवाले 'सेन ', सेमरवृक्षवाले 'वीर' और नागकेसरवाले 'भद्र' तथा 'सिंह' कहलाये। पंचस्तूप्यनिवासादुपागता येऽनगारिणस्तेषु । काँश्चित्सेनाभिख्यान्काँश्चिद्भद्राभिधानकरोत् ॥ ९३ ॥ ये शाल्मलीमहाद्रुममूलायतयोऽभ्युपागतास्तेषु । काँश्चिगुणधरसंज्ञान्काँश्चिगुप्ताह्वयानकरोत् ॥ ९४ ॥ ये खण्डकेसरद्रुममूलान्मुनयः समगतास्तेषु । काँश्चित्सिंहाभिख्यान्काँश्चिच्चन्द्राह्वयानकरोत् ॥ ९५ ॥ x अन्ये जगुर्गुहाया:विनिर्गता नन्दिनो महात्मानः । देवाश्चाशोकवनात्पंचस्तूप्यास्ततः सेनः ॥ ९७ ॥ विपुलतरशाल्मलाद्रुममूलगतावासवासिनो वीराः । भद्राश्चखण्डकेसरतरुमूलनिवासिनो जाताः ॥ ९८॥ गुहायां वासितो ज्येष्ठो द्वितीयोऽशोकवाटिकात् । निर्यातौ नन्दिदेवाभिधानावाद्यावनुक्रमात् ॥ ९९ ॥ पंचस्तूप्यास्तु सेनानां वीराणां शाल्मलीद्रुमः । खण्डकेसरनामा च भद्रः सिंहोऽस्य सम्मतः ॥ १० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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