Book Title: Gommatasara Jiva kanda Part 2 Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri Publisher: Bharatiya GyanpithPage 24
________________ ५१० गो० जीवकाण्डे श्रु ताज्ञानत्व प्रसंगमुळुदरिंदमुपदेशक्रियेयिल्लदे येत्तलानुमितप्पूहापोहविकल्पात्मकमप्प हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहकारणमप्पातरौद्रध्यानकारणमप्प शल्यदंडगारवसंज्ञाद्यप्रशस्तपरिणामकारणमप्प इंद्रियमनोजनितविशेषग्रहणरूपमप्प मिथ्याज्ञानमदु मत्यज्ञानमें दितु निश्चयिसल्पडुवुदु । आभीयमासुरक्खं भारहरामायणादि उवएसा । तुच्छा असाहणीया सुयअण्णाणेत्ति णं बंति ॥३०४।। आभीतमासुरक्षं भारतरामायणाद्युपदेशाः । तुच्छा असाधनीयाः श्रु ताज्ञानमितीदं ब्रुवंति ॥ तुच्छाः परमार्थशून्यंगळु असाधनीयाः सत्पुरुषवर्गनादरणीयंगळुमेके दोडे परमार्थशून्यत्वदिदं आभीताऽसुरक्षभारतरामायणाद्युपदेशंगळं तत्प्रबंधंगळुमवर श्रवदिदं पुट्टिदुदावुदोंदु ज्ञानमदिदु श्र ताज्ञानमें दिताचार्यरुगळु पेळ्वरु। आसमंतात् भीताः आभीताः चोरास्तच्छास्त्रमप्याऽऽभीतं । असवः प्राणास्तेषां रक्षा येभ्यस्तेऽसुरक्षास्तलवरास्तेषां शास्त्रमासुरक्षं। कौरवपांडवीयपंचभर्तृकैकभा-वृत्तांतयुद्धव्यतिकरादिचाव्याकुलमं भारतमें बुदु । सीताहरणरामरावणीयजातिवानरराक्षसयुद्धव्यतिकरादिस्वेच्छाकल्पनारचितमं रामायणमें बुदु । आदिशब्ददिदावुदावुदु मिथ्यादर्शनदूषितसर्वथैकांतवादिस्वेच्छाकल्पितकथाप्रबंधभुवनकोशहिसायागादिगृहस्थकर्ममुं त्रिबन्धनग्रहहरिणादिशृङ्गाग्रलग्नसूत्रग्रन्थिविशेषादिश्च गृह्यते । उपदेशपूर्वकत्वे श्रु ताज्ञानत्वप्रसंगात् । उपदेशक्रियां विना यदीदृशमूहापोहविकल्पात्मकं हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहकारणं आर्तरौद्रध्यानकारणं शल्यदण्डगारवसंज्ञाद्यप्रशस्तपरिणामकारणं च इन्द्रियमनोजनितविशेषग्रहणरूपं मिथ्याज्ञानं तन्मत्यज्ञानमिति निश्चेतव्यं ॥३०३॥ तुच्छाः परमार्थशून्याः, असाधनीयाः अत एव सत्पुरुषाणामनादरणीयाः परमार्थशून्यत्वात् आभीतासुरक्षभारतरामायणाद्युपदेशाः तत्प्रबन्धाः तेषां श्रवणादुत्पन्नं यज्ज्ञानं तदिदं श्रुताज्ञानमिति ब्रुवन्त्याचार्याः । आ समन्ताभीताः आभीता चोराः तच्छास्त्रमप्याभीतं । असवः प्राणाः तेषां रक्षा येभ्यः ते असुरक्षाः तलवराः तेषां शास्त्रमासुरक्षं। कौरवपाण्डवीयपञ्चभर्तृकैकभार्यावृत्तान्तयुद्धव्यतिकरादिचर्चाव्याकुलं भारतं, सीताहरणरामरावणीयजातिवानरराक्षसयुद्धव्यतिकरादिस्वेच्छाकल्पनारचितं रामायणं । आदिशब्दाद्यद्यन्मिथ्यादर्शनदूषितही बुद्धि लगती है , वह कुमति ज्ञान है। उपदेशपूर्वक होनेपर उसे कुश्रुत ज्ञानका प्रसंग आता है। अतः उपदेशके बिना जो इस प्रकारका ऊहापोह विकल्परूप हिंसा, असत्य, चोरी, विषयसेवन और परिग्रहका कारण, आत तथा रौद्रध्यानका कारण, शल्य, दण्ड, गारव, संज्ञा आदि अप्रशस्त परिणामोंका कारण, जो इन्द्रिय और मनसे उत्पन्न हुआ विशेष ग्रहणरूप मिथ्या-ज्ञान है,वह कुमतिज्ञान है। यह निश्चय करना चाहिए ॥३०३।। ___ तुच्छ अर्थात् परमार्थसे शून्य और इसी कारणसे सज्जनोंके द्वारा अनादरणीय २० आभीत तथा आसुरक्षा शास्त्र, भारत-रामायण आदिके उपदेश, उनकी रचनाएं, उनका सुनना तथा उनके सुननेसे उत्पन्न हुआ ज्ञान , उसे आचार्य श्रुतअज्ञान कहते हैं। आभीत चोरको कहते हैं,क्योंकि उसे सब ओरसे भय सताता है। उनके शास्त्रको भी आभीत शास्त्र कहते हैं । असु अर्थात् प्राणोंकी रक्षा जिनसे होती है,वे असुरक्ष अर्थात् कोतवाल आदि उनके शास्त्रको असुरक्ष कहते हैं। कौरव पाण्डवोंके युद्ध, पंचभर्ता द्रौपदीका वृत्तान्त, युद्धकी कथा आदिकी २५ चर्चासे भरा महाभारत ग्रन्थ है, सीताहरण, रामकी उत्पत्ति, रावणकी जाति, वानरों और राक्षसोंके युद्धकी यथेच्छ कल्पनाको लेकर रची गयी रामायण है। आदि शब्दसे जो-जो मिथ्यादर्शनसे दूषित सर्वथा एकान्तवादी यथेच्छ कथाप्रबन्ध, भुवनकोश हिंसामय यज्ञादि १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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