Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 327
________________ o पुरुष-प्रकृति-लीला होता है, न उनके जीवन में कोई सत्य, न उनके जीवन में कोई | लेकिन अगर ध्यान आपकी कोई आत्मिक यात्रा है; जैसी बुद्ध प्रफुल्लता, न उनके जीवन में कोई उत्सव आता है। उनके जीवन में की खोज है, महावीर की खोज है, ऐसी अगर कोई खोज है, जिस वह सुगंध नहीं दिखाई पड़ती, जो बुद्ध के जीवन में दिखाई पड़ती है। पर आपका पूरा जीवन समर्पित है; यह कोई शांति की तलाश नहीं तो कुछ बुनियादी भीतरी फर्क होगा। वह फर्क क्या है? क्योंकि | है, सत्य की तलाश है; यह केवल दुख और बोझ के कम होने की यंत्र तो कहता है, दोनों में एक-सी तरंगें पैदा हो रही हैं। वह फर्क बात नहीं है, आनंद में स्थापित होने की बात है; यह कोई है, यात्रा का फर्क। वह फर्क है, असली फूल और बाजार से खरीद कामचलाऊ जिंदगी ठीक से चल सके, इसलिए थोड़ी शांति रहे, लाए फूल-अपने बगीचे में पैदा किए गए फूल और जाकर बाजार ऐसी व्यवस्था नहीं है, बल्कि परम मुक्ति कैसे अनुभव हो, उसकी से एक फूल खरीद लाएं हैं, टूटा हुआ, उसमें जो फर्क है। | खोज है: तो फिर यंत्र से यह आनंद, यह समाधि, यह ध्यान यह जो यंत्र से पैदा हो रहा है, यह ऊपर से चेष्टित और आरोपित उपलब्ध नहीं होगा। है। मन यह अभ्यास सीख लेगा, और इस यंत्र के साथ तालमेल लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं कोई यंत्र का विरोध कर बिठा लेगा। तालमेल बैठ जाने से शांति मालूम पड़ेगी। और जिन | रहा हूं। मैं सिर्फ इतना कह रहा हूं कि यंत्र का भी उपयोग करना लोगों को अशांति से तकलीफ है, उनके लिए यंत्र उपयोगी है। | अच्छा है। उससे कम से कम शांति तो मिलेगी। और यह भी लेकिन ध्यान की पूर्ति नहीं होगी। ध्यान की पूर्ति असंभव है। खयाल आएगा कि जब यंत्र से इतनी शांति मिल सकती है, तो इसको हम ऐसा समझें। स्लेटर का जो प्रयोग मैंने आपसे कहा ध्यान से कितनी संभावना हो सकती है और समाधि से कितना...! कि चूहे को उसने संभोग का प्रयोग करा दिया यंत्र से, और चूहा एक झलक उससे मिलेगी, वह झलक अपने आप में बुरी नहीं प्रयोग करता चला गया। इसमें भी वही फर्क है। है। लेकिन अगर कोई सोचता हो कि यंत्र योग की जगह ले लेंगे, अगर किसी स्त्री से आपका प्रेम है—जो जरा मुश्किल बात है। तो भूल में है। कोई अगर सोचता हो कि यंत्र प्रेम की जगह ले लेंगे, क्योंकि आमतौर से तो लोग सोचते हैं कि सभी को प्रेम है। प्रेम | तो भूल में है। इतनी ही कठिन बात है, जैसा कभी-कभी कोई वैज्ञानिक होता है। वह जो आंतरिक है, उसकी जगह कोई भी यंत्र नहीं ले सकता। कभी-कभी कोई कवि होता है। कभी-कभी कोई दार्शनिक होता है। लेकिन अगर आपकी जिंदगी सिर्फ बाह्य है, तो यंत्र उसकी जगह कभी-कभी कोई चित्रकार होता है। ऐसे ही कभी-कभी कोई प्रेमी | ले सकते हैं। होता है। प्रेमी भी सब लोग होते नहीं। अब हम सूत्र को लें। अगर सच में ही किसी पुरुष को किसी स्त्री से प्रेम है, तो उस हे अर्जुन, इस प्रकार क्षेत्र तथा ज्ञान अर्थात ज्ञान का साधन और स्त्री के साथ संभोग में जो आनंद उसे उपलब्ध होगा, वह स्लेटर | | जानने योग्य परमात्मा का स्वरूप संक्षेप से कहा गया। इसको तत्व का यंत्र पैदा नहीं करवा सकता। हां, अगर आपको स्त्री से कोई प्रेम से जानकर मेरा भक्त मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है। नहीं है और आप किसी वेश्या के पास संभोग करने चले गए हैं, क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संबंध में, ज्ञान और ज्ञान के साधन के संबंध तो जो आपको क्षणभर की जो प्रतीति होगी संभोग में-मुक्तता | | में, कृष्ण कहते हैं, मैंने थोड़ी-सी बातें कहीं। इनको अगर कोई तत्व की, खाली हो जाने की, बोझ के उतर जाने की—वह स्लेटर के से जान ले, तो वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है। यंत्र से भी हो जाएगी। तत्व से जानकर! इसे हम समझ लें। यंत्र के द्वारा भी वह संभोग पैदा हो सकता है, जो उस व्यक्ति | एक तो जानकारी है सूचना की। कोई कहता है, हम सुन लेते हैं के साथ आपको पैदा होता है, जिससे आपका कोई गहरा प्रेम नहीं | और हम भी जान लेते हैं। वह तत्व से जानना नहीं है। एक जानकारी है। लेकिन अगर प्रेम है, तो यंत्र फिर उस संभोग को पैदा नहीं कर | है अनुभव की, स्वयं के साक्षात की। हम ही जानते हैं। तब हम सकता। | तत्व से जानते हैं। अगर आपको सिर्फ मन की थोड़ी-सी शांति चाहिए, जो कि एक आदमी कहता है कि सागर का जल खारा है। हम समझ ट्रैक्वेलाइजर से भी पैदा हो जाती है, तो वैसी ही शांति आपको गए। जल भी हमने देखा है। सागर भी हमने देखा है। खारेपन का अल्फा तरंगें पैदा करने वाले यंत्र से भी पैदा हो जाएगी। | भी हमको पता है। समझ गए। वाक्य का अर्थ हमारी समझ में आ 301

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