Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 346
________________ गीता दर्शन भाग-60 उसकी रीढ़ सीधी हो जाती है, और कहां वह शिथिल होकर बैठ | आनंद को, जब तक ऐसा लगता है, लौट सकता हूं। द्वैत कायम जाता है! वह देख रहा है। बाहर और भीतर उसकी चेतना में क्या | है, अभी वापसी हो सकती है। लेकिन जब मुझे पता ही नहीं चलता हो रहा है, वह देख रहा है। और इस माध्यम से वह भी चुन रहा है | कि कौन परमात्मा और कौन मैं, दोनों एक हो गए, तब लौटना नहीं कि इस शिष्य के लिए क्या जरूरी होगा, क्या उपयोगी होगा। हो सकता। - इसलिए कष्ण ने सारे मार्गों की बात कही है। उन सारे मार्गों पर रामकष्ण परमहंस ज्ञान की स्थिति से लौटे। सागर के ठीक अर्जुन को चलना नहीं है। अर्जुन को चलना तो होगा एक ही मार्ग किनारे पहुंच गई नदी, तब उन्होंने कहा कि अब मैं जरा दूसरी नदी पर। लेकिन इन सारों को चलने के पहले जान लेना जरूरी है। के रास्ते पर भी चलकर देखू कि वह नदी भी सागर तक पहुंचती है या नहीं! तब वे दूसरी नदी के रास्ते पर चले। फिर किनारे पर पहुंचे | और उन्होंने कहा कि अब मैं तीसरी नदी के रास्ते पर चलकर देखें, एक और प्रश्न। एक मित्र ने पूछा है कि रामकृष्ण वह भी सागर तक पहुंचती है या नहीं! इस तरह उन्होंने अनेक मार्गों परमहंस ने अनेक-अनेक मार्गों से चलकर एक ही की साधना की। मंजिल और एक ही सत्य की पुष्टि की। लेकिन एक जब अनेक मार्गों से चलकर उन्होंने देख लिया कि सभी नदियां साधना से सिद्ध होने के बाद भी उन्होंने वापस दूसरी सागर पहुंच जाती हैं। जो पूर्व की तरफ बहती हैं, वे भी सागर पहुंच साधना को अब स से कैसे शुरू किया होगा? क्या जाती हैं। जो पश्चिम की तरफ बहती हैं, वे भी सागर पहुंच जाती वे ज्ञान को उपलब्ध होकर फिर से अज्ञानी हो जाते हैं। जो उत्तर की तरफ बहती हैं, वे भी सागर पहुंच जाती हैं। जो थे और फिर नए मार्ग से शुरू करते थे? दक्षिण की तरफ बहती हैं, वे भी सागर पहुंच जाती हैं। जिनका रास्ता बिलकुल सीधा है, वे भी सागर पहुंच जाती हैं। जो बहुत इरछी-तिरछी बहती हैं, वे भी सागर पहुंच जाती हैं। जो बड़ी शांत + डा समझने जैसा है। परम ज्ञान के बाद तो कोई वापस | हैं, गंभीर हैं, वे भी सागर पहुंच जाती हैं। और जो बिलकुल तूफानी नहीं लौट सकता। कोई उपाय नहीं है। क्योंकि मंजिल हैं और विक्षिप्त हैं, वे भी सागर पहुंच जाती हैं। और यात्री एक हो जाते हैं। जब मंजिल और यात्री एक जब रामकृष्ण ने यह सब देख लिया, तब वे सागर में गिर गए। हो जाते हों, तो फिर लौटेगा कौन और कैसे? उसके बाद नहीं लौटा जा सकता। परम ज्ञान...। लेकिन परम ज्ञान के पहले, ठीक मंजिल पर पहुंचने के पहले तो बुद्ध ने भी दो शब्दों का उपयोग किया है, निर्वाण और परम एक आखिरी कदम जब रह जाता है, उसे हम ज्ञान कहते हैं। परम निर्वाण। निर्वाण का अर्थ है, आखिरी क्षण, जहां से आदमी चाहे, ज्ञान कहते हैं, जब मंजिल और यात्री एक हो जाते हैं। नदी सागर तो वापस लौट सकता है। और जहां से चाहे, तो गिर सकता है उस में गिर गई; अब नहीं लौट सकेगी। लेकिन नदी किनारे तक पहुंची अवस्था में, जहां से कोई वापसी नहीं है। उसको निर्वाण कहा है। है और ठहरी है। सागर में गिर सकती है, लौट भी सकती है। ज्ञान और जो गिर गया, उसको परम निर्वाण का क्षण है, जब साधक सिद्ध होने के द्वार पर पहुंच जाता है। वहां तो रामकृष्ण लौटे निर्वाण की दशा से, ज्ञान की दशा से। परम से सब कुछ दिखाई पड़ता है, सागर का पूरा विस्तार। लेकिन अभी ज्ञान की दशा से कोई भी नहीं लौट सकता है। भी फासला कायम है। साधक अभी भी सिद्ध नहीं हो गया है। सिद्ध अब हम सूत्र को लें। होने के करीब आ गया है, बिलकुल करीब आ गया है। सिद्ध होने परंतु प्रकृति में स्थित हुआ ही पुरुष प्रकृति से उत्पन्न हुए के बराबर हो गया है। एक क्षण, और लीन हो जाएगा। त्रिगुणात्मक सब पदार्थों को भोगता है और इन गुणों का संग ही लेकिन अभी चाहे तो लौट सकता है। जब तक दो का अनुभव इसके अच्छी-बुरी योनियों में जन्म लेने में कारण है। वास्तव में तो होता है, तब तक लौटना हो सकता है। जब तक मैं देखता हूं कि यह पुरुष इस देह में स्थित हुआ भी पर ही है, केवल साक्षी होने से वह रहा परमात्मा और यह रहा मैं, तब तक लौट सकता हूं। जब | उपद्रष्टा और यथार्थ सम्मति देने वाला होने से अनुमंता एवं सबको तक मैं देखता हूं, यह रहा मैं और यह रहा आनंद; मैं जानता हूं | | धारण करने वाला होने से भर्ता, जीव रूप से भोक्ता तथा ब्रह्मादिकों 3201

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