Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 385
________________ कौन है आंख वाला शांत रहा जा सकता है? वहां कोई कैसे आनंदित हो सकता है? | लगा, जैसे मैं भी कहां खुशी की बात में एक दुख की बात बीच में जहां चारों तरफ घर में आग लगी हो, वहां कैसे उत्सव और कैसे | | ले आया। वे बड़े उदास हो गए। उन्होंने मेरी बात टालने की नृत्य चल सकता है? | कोशिश की। उन्होंने कहा कि नहीं, मैंने खंडहर तो देखे हैं। फिर असंभव है। तब एक ही उपाय है कि इस आग लगे हुए घर के | लेकिन वही माडल, वही चर्चा। भीतर हम छोटा और घर बना लें, उसमें छिप जाएं अपने उत्सव को ___ मैंने कहा, आपने नहीं देखे। क्योंकि जिन्होंने ये बनाए थे, उन्होंने बचाने के लिए। लेकिन वह बच नहीं सकता। परिवर्तन की धारा, | आपसे भी बहुत ज्यादा सोचा होगा। इतने बड़े महल आप नहीं बना जो भी हम बनाएंगे, उसे तोड़ देगी। सकोगे। आज न बनाने वाले हैं, न उनके महल बचे। सब मिट्टी हो बुद्ध का वचन बहुत कीमती है। बुद्ध ने कहा है, ध्यान रखना, | गया है। आप जो बनाओगे वह मिट्टी हो जाएगा, इसको ध्यान में जो बनाया जा सकता है, वह मिटेगा। बनाना एक छोर है, मिटना | रखकर बनाना। वे कहने लगे कि आप कुछ ऐसी बातें करते हो कि दूसरा छोर है। और जैसे एक डंडे का एक छोर नहीं हो सकता, | मन उदास हो जाता है। अकारण आप उदास कर देते हैं। दूसरा भी होगा ही। चाहे आप कितना ही छिपाओ, भुलाओ, डंडे | | मैं आपको उदास नहीं कर रहा हूं। दूसरा छोर देखना जरूरी है। का दूसरा छोर भी होगा ही। या कि आप सोचते हैं कोई ऐसा डंडा | | दूसरे छोर को देखकर बनाओ। दूसरे छोर को जानते हुए बनाओ। हो सकता है, जिसमें एक ही छोर हो? वह असंभव है। | जो भी बनाएंगे, वह मिट जाएगा। - तो बुद्ध कहते हैं, जो बनता है, वह मिटेगा। जो निर्मित होता है, | हमारा बनाया हआ शाश्वत नहीं हो सकता। हम शाश्वत नहीं वह बिखरेगा। दूसरे छोर को भुलाओ मत। वह दूसरा छोर है ही, | | हैं। लेकिन हमारे भीतर और इस परिवर्तन के भीतर कुछ है, जो उससे बचा नहीं जा सकता। लेकिन हमारी आंखें अंधी हैं। और हम | | शाश्वत है। अगर हम उसे देख लें...। ऐसे अंधे हैं, हमारी आंखों पर ऐसी परतें हैं कि जिसका हिसाब नहीं। उसे देखा जा सकता है। परिवर्तन को जो साक्षीभाव से देखने मैं एक उजड़े हुए नगर में मेहमान था। वह नगर कभी बहुत बड़ा लगे, थोड़े दिन में परिवर्तन की पर्त हट जाती है और शाश्वत के था। लोग कहते हैं कि कोई सात लाख उसकी आबादी थी। रही। | दर्शन होने शुरू हो जाते हैं। परिवर्तन से जो लड़े नहीं, परिवर्तन को होगी, क्योंकि खंडहर गवाही देते हैं। केवल सात सौ वर्ष पहले ही जो देखने लगे; परिवर्तन के विपरीत कोई उपाय न करे, परिवर्तन वह नगर आबाद था। सात लाख उसकी आबादी थी। और अब | | के साथ जीने लगे; परिवर्तन से भागे नहीं, परिवर्तन में बहने लगे; मुश्किल से नौ सौ आदमी उस नगर में रहते हैं। नौ सौ कुछ की | न कोई लड़ाई, न कोई झगड़ा, न विपरीत में कोई आयोजन; जो संख्या तख्ती पर लगी हुई है। परिवर्तन को राजी हो जाए, सिर्फ जागा हुआ देखता रहे। उस नगर में इतनी-इतनी बड़ी मस्जिदें हैं कि जिनमें दस हजार धीरे-धीरे...। परिवर्तन की पर्त बहुत पतली है। होगी ही। परिवर्तन लोग एक साथ नमाज पढ़ सकते थे। इतनी-इतनी बड़ी धर्मशालाएं की पर्त बहुत मोटी नहीं हो सकती, बहुत पतली है, तभी तो क्षण में हैं, जिनमें अगर गांव में एक लाख लोग भी मेहमान हो जाएं बदल जाती है। धीरे-धीरे परिवर्तन की पर्त मखमल की पर्त मालूम अचानक, तो भी कोई अड़चन न होगी। आज वहां केवल नौ सौ | होने लगती है। उसे आप हटा लेते हैं। उसके पार शाश्वत दिखाई कुछ आदमी रहते हैं। सारा नगर खंडहर हो गया है। | पड़ना शुरू हो जाता है। जिन मित्र के साथ मैं ठहरा था, वे अपना नया मकान बनाने की | ___ कृष्ण कहते हैं, नाशरहित परमेश्वर को जो समभाव से स्थित योजना कर रहे थे। वे इतने भावों से भरे थे नए मकान के; मुझे | देखता है, वही देखता है। क्योंकि वह पुरुष समभाव से स्थित हुए नक्शे दिखाए, माडल दिखाए कि ऐसा बनाना है, ऐसा बनाना है। । परमेश्वर को समान देखता हुआ अपने द्वारा आपको नष्ट नहीं और उनके चारों तरफ खंडहर फैले हुए हैं। उनकी भी उम्र उस समय | | करता है। इससे वह परम गति को प्राप्त होता है। कोई साठ के करीब थी। अब तो वे हैं ही नहीं। चल बसे। मकान __ क्योंकि वह पुरुष समभाव से स्थित हुए परमेश्वर को समान बनाने की योजना कर रहे थे। | देखता हुआ अपने द्वारा आपको नष्ट नहीं करता है। इसे समझ लें। उनकी सारी योजनाएं सुनकर मैंने कहा, लेकिन एक बार तुम घर | इससे वह परम गति को प्राप्त होता है। के बाहर जाकर ये खंडहर भी तो देखो। उन्हें मेरी बात सुनकर ऐसा हम अपने ही द्वारा अपने आपको नष्ट करने में लगे हैं। हम जो 359

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