Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 413
________________ FO अकस्मात विस्फोट की पूर्व-तैयारी विचार सांत्वना देते हैं। उससे आदमी सोचता है, किए चले जाओ | कोई उपाय नहीं था। नरेश लेने को राजी नहीं था बेहोशी की कोई पाप, आखिरी क्षण में सम्हाल लेंगे। | दवा और आपरेशन एकदम जरूरी था। अगर आपरेशन न हो, तो अगर सम्हालने की ही ताकत है, तो अभी सम्हालने में क्या | भी मौत हो जाए। तो फिर यह खतरा लेना उचित मालूम पड़ा। जब तकलीफ है? अगर बुद्ध जैसे होने की ही बात है, तो अगले जन्म | बिना आपरेशन के भी मौत हो जाएगी, तो एक खतरा लेना उचित पर टालना क्यों? अभी हो जाने में कौन बाधा डाल रहा है? अगर | है। आपरेशन करके देख लिया जाए। ज्यादा से ज्यादा मौत ही होगी तुम्हारे ही हाथ में है बुद्ध होना, तो अभी हो जाओ। | जो कि निश्चित है। लेकिन संभावना है कि बच भी जाए। लेकिन तुम भलीभांति जानते हो कि अपने हाथ में नहीं दिखता, यह पहला मौका था चिकित्सा के इतिहास में कि इतना बड़ा तो टालते हैं। इससे मन में राहत बनी रहती है कि कोई फिक्र नहीं, | आपरेशन बिना किसी बेहोशी की दवा के किया गया। काशी नरेश आज नहीं तो कल हो जाएंगे, कल नहीं तो परसों हो जाएंगे। और अपनी गीता का पाठ करते रहे, आपरेशन हो गया। हम बहते चले जाते हैं मूर्छा में। आपरेशन पूरा हो गया। कोई कहीं अड़चन न हुई। चिकित्सक मरते क्षण में आपको कोई होश होने वाला नहीं है। जिस व्यक्ति बहुत हैरान हुए। जो अंग्रेज डाक्टर, सर्जन ने यह आपरेशन किया को मरते क्षण में होश रखना हो, उसे जीवित क्षण को होश के लिए था, वह तो चमत्कृत हो गया। उसने कहा कि आप किए क्या? उपयोग करना होगा। और इसके पहले कि असली मृत्यु घटे | क्योंकि इतनी असह्य पीड़ा! आपको ध्यान में मरने की कला सीखनी होगी। तो काशी नरेश ने कहा कि मैं ध्यान करता रहा कृष्ण के वचनों ध्यान मृत्यु की कला है। वह मरने की तरकीब है अपने हाथ। | का—कि न शरीर के काटे जाने से आत्मा कटती है, न छेदे जाने जब शरीर अपने आप मरेगा, तब हो सकता है, इतनी सुविधा भी से छिदती है, न जलाए जाने से जलती है। बस मैं एक ही भाव में 'न हो। वह घटना इतनी नई होगी कि आप मुश्किल में पड़ जाएंगे। । डूबा रहा कि मैं अलग हूं, मैं कर्ता नहीं हूं, भोक्ता नहीं हूं, मैं सिर्फ उस वक्त होश सम्हालना अति अड़चन का होगा। ध्यान में आप | | साक्षी हूं। न मुझे कोई जला सकता है; न मुझे कोई छेद सकता है; मरकर पहले ही देख सकते हैं। ध्यान में आप शरीर को छोड़ सकते | न मुझे कोई काट सकता है। यह भाव मेरा सघन बना रहा। तुम्हारे हैं और शरीर से अलग हो सकते हैं। औजारों की खटपट मुझे सुनाई पड़ती रही। लेकिन ऐसे जैसे कहीं जो व्यक्ति ध्यान में मृत्यु को साधने लगता है, वह मृत्यु के आने दूर फासले पर सब हो रहा है। पीड़ा भी थी, लेकिन दूर, जैसे मैं के बहुत पहले मृत्यु से भलीभांति परिचित हो जाता है। उसने मरकर उससे अलग खड़ा हूं। मैं देख रहा हूं। जैसे पीड़ा किसी और को देख ही लिया है। अब मृत्यु के पास नया कुछ भी नहीं है। और जो घटित हो रही है। व्यक्ति अपने को अपने शरीर से अलग करके देख लेता है, मृत्यु अब यह जो सम्राट है, यह मृत्यु में भी होश रख सकता है। फिर उसे बेहोश करने की आवश्यकता नहीं मानती। फिर कोई | जीवन में इसने होश का गहरा प्रयोग कर लिया है। जरूरत नहीं है। मृत्यु पर भरोसा न करें, जीवन पर भरोसा करें। और जीवन में ऐसा हुआ कि उन्नीस सौ आठ में काशी के नरेश का एक | साध लें, जो भी होना चाहते हों। मृत्यु पर टालें मत। वह धोखा आपरेशन हुआ पेट का। लेकिन काशी के नरेश ने कहा कि मैं कोई | सिद्ध होगा। जो भी क्षण हाथ में हैं, उनका उपयोग करें। बेहोशी की दवा लेने को तैयार नहीं है। एपेंडिसाइटिस का __ और अगर बुद्धत्व को पाना है, तो इसी घड़ी उसके श्रम में लग आपरेशन था, डाक्टरों ने कहा कि मुश्किल मामला है। बेहोश तो | जाएं, क्योंकि बुद्धत्व कोई ऐसी बच्चों जैसी बात नहीं है कि आप करना ही पड़ेगा। क्योंकि इतनी असह्य पीड़ा होगी कि अगर आप सोच लेंगे और हो जाएगी। बहुत श्रम करना होगा, बहुत साधना हिल गए, चिल्लाने लगे, रोने लगे, भागने लगे, तो हम क्या करनी होगी। और तभी अंतिम क्षण में वह बीज बन जाएगा और करेंगे? सारा खतरा हो जाएगा। जीवन का खतरा है। नया जन्म उस बीज के मार्ग से अंकुरित हो सकता है। लेकिन नरेश ने कहा कि बिलकुल चिंता मत करें। मुझे सिर्फ मेरी गीता पढ़ने दें। मैं अपनी गीता पढ़ता रहूंगा, आप आपरेशन करते रहना। एक मित्र ने पूछा है, अगर सभी मनुष्य अकर्ता बन 387]

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