Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 423
________________ 0 अकस्मात विस्फोट की पूर्व-तैयारी 0 तो शुद्ध चमीटा बचेगा। समझ में आ गई है। जब मेरे हाथ में कुछ भी पकड़ में न रह जाए, तो मेरा शुद्ध हाथ | | अनुभव को निरंतर स्मरण रखना जरूरी है। इसलिए कृष्ण कहते बचेगा। जब मेरी चेतना के लिए कोई भी चीज जानने को शेष न | | हैं, जिनको अपने ही ज्ञान-नेत्रों से तत्व का अनुभव होता है, वे रह जाए. तो सिर्फ चैतन्य बचेगा। लेकिन यह अनभव से। महात्माजन...। और यहां वे तत्क्षण उनके लिए महात्मा का तर्क से समझ में आ जाता है। और एक बड़े से बड़ा खतरा है।। उपयोग करते हैं। जब समझ में आ जाता है, तो हम सोचते हैं, बात हो गई। अनुभव आपको महात्मा बना देता है। उसके पहले आप पंडित इधर मैं देखता हूं, पचास साल से गीता पढ़ने वाले लोग हैं। रोज | हो सकते हैं। पंडित उतना ही अज्ञानी है, जितना कोई और पढ़ते हैं। भाव से पढ़ते हैं, निष्ठा से पढ़ते हैं। उनकी निष्ठा में कोई | अज्ञानी। फर्क थोड़ा-सा है कि अज्ञानी शुद्ध अज्ञानी है, और कमी नहीं है। उनके भाव में कोई कमी नहीं है। प्रामाणिक है उनका | पंडित इस भ्रांति में है कि वह अज्ञानी नहीं है। इतना ही फर्क है कि श्रम। और गीता वे बिलकुल समझ गए हैं। वही खतरा हो गया है। | पंडित के पास शब्दों का जाल है, और अज्ञानी के पास शब्दों का किया उन्होंने बिलकुल नहीं है कुछ भी। जाल नहीं है। पंडित को भ्रांति है कि वह जानता है, और अज्ञानी सिर्फ गीता को समझते रहे हैं, बिलकुल समझ गए हैं। उनके को भ्रांति नहीं है ऐसी। खून में बह गई है गीता। वे मर भी गए हों और उनको उठा लो, तो अगर ऐसा समझें, तब तो अज्ञानी बेहतर हालत में है। क्योंकि वे गीता बोल सकते हैं, इतनी गहरी उनकी हड्डी-मांस-मज्जा में | उसका जानना कम से कम सचाई के करीब है। पंडित खतरे में है। उतर गई है। लेकिन उन्होंने किया कुछ भी नहीं है, बस उसको पढ़ते इसलिए उपनिषद कहते हैं कि अज्ञानी तो भटकते हैं अंधकार में, रहे हैं, समझते रहे हैं। बुद्धि भर गई है, लेकिन हृदय खाली रह गया | ज्ञानी महाअंधकार में भटक जाते हैं। वे इन्हीं ज्ञानियों के लिए है। और अस्तित्व से कोई संपर्क नहीं हो पाया है। कहते हैं। तो कई बार बहुत प्रामाणिक भाव, श्रद्धा, निष्ठा से भरे लोग भी यह तो बड़ा उलटा सूत्र मालूम पड़ता है! उपनिषद के इस सूत्र चूक जाते हैं। चूकने का कारण यह होता है कि वे स्मृति को ज्ञान | | को समझने में बड़ी जटिलता हुई। क्योंकि सूत्र कहता है, अज्ञानी समझ लेते हैं। तो भटकते हैं अंधकार में, ज्ञानी महाअंधकार में भटक जाते हैं। तो अनुभव की चिंता रखना सदा। और जिस चीज का अनुभव न | | फिर तो बचने का कोई उपाय ही न रहा। अज्ञानी भी भटकेंगे और हुआ हो, खयाल में रखे रखना कि अभी मुझे अनुभव नहीं हुआ | ज्ञानी और बुरी तरह भटकेंगे, तो फिर बचेगा कौन? । है। इसको भूल मत जाना। बचेगा अनुभवी। अनुभवी बिलकुल तीसरी बात है। अज्ञानी वह मन की बड़ी इच्छा होती है इसे भूल जाने की, क्योंकि मन मानना | है, जिसे शब्दों का, शास्त्रों का कोई पता नहीं। और ज्ञानी वह है, चाहता है कि हो गया अनुभव। अहंकार को बड़ी तृप्ति होती है कि | जिसे शब्दों और शास्त्रों का पता है। और अनुभवी वह है, जिसे मुझे भी हो गया अनुभव। शास्त्रों और शब्दों का नहीं, जिसे सत्य का ही स्वयं पता है, जहां लोग मेरे पास आते हैं। वे मुझसे पूछते हैं कि मुझे ऐसा-ऐसा | से शास्त्र और शब्द पैदा होते हैं। अनुभव हुआ है, आत्मा का अनुभव हुआ है। आप कह दें कि मुझे | शास्त्र तो प्रतिध्वनि है, किसी को अनुभव हुए सत्य की। वह आत्मा का अनुभव हो गया कि नहीं? प्रतिध्वनि है। और जब तक आपको ही अपना अनुभव न हो जाए, मैं उनसे पूछता हूं कि तुम मुझसे पूछने किस लिए आए हो? | सभी शास्त्र झूठे रहेंगे। आप गवाह जब तक न बन जाएं, जब तक क्योंकि आत्मा का जब तुम्हें अनुभव होगा, तो तुम्हें किसी से पूछने | आप न कह सकें कि ठीक, गीता वही कहती है जो मैंने भी जान की जरूरत न रह जाएगी। मैं कह दूं कि तुम्हें आत्मा का अनुभव हो । | लिया है, तब तक गीता आपके लिए असत्य रहेगी। गया, तुम बड़ी प्रसन्नता आपके हिंद होने से गीता सत्य नहीं होती। और आपके एक सर्टिफिकेट मिल गया। सर्टिफिकेट की कोई जरूरत नहीं है। गीता-प्रेमी होने से गीता सत्य नहीं होती। जब तक आपका अनुभव तुम्हें अभी हुआ नहीं है। तुमने समझ ली है सारी बात। तुम्हें समझ | गवाही न दे दे कि ठीक, जो कृष्ण कहते हैं क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का भेद, में इतनी आ गई है कि तुम यह भूल ही गए हो कि अनुभव के बिना | वह मैंने जान लिया है; और मैं गवाही देता हूं अपने अनुभव से; माणपत्र, 397

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