Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 422
________________ गीता दर्शन भाग-6 दिखाई पड़ जाए, वह मैं नहीं हूं। धीरे-धीरे-धीरे विचार भी खो जाएंगे। जैसे-जैसे यह धार तलवार की गहरी होती जाएगी, प्रखर होती जाएगी, और मेरी काटने की कला साफ होती जाएगी कि जो भी मुझे दिखाई पड़ जाए, वह मैं नहीं हूं, एक घड़ी ऐसी आती है, जब कुछ भी दिखाई पड़ने को शेष नहीं रह जाता है। वही ध्यान की घड़ी है। उसको शून्य कहा जाता है, क्योंकि कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। लेकिन अगर शून्य दिखाई पड़ता है, तो वह भी मैं नहीं हूं, यह खयाल रखना जरूरी है। क्योंकि ऐसे बहुत से ध्यानी भूल में पड़ गए हैं। क्योंकि जब कोई भी विषय नहीं बचता, तो वे कहते हैं, शून्य रह गया। •बौद्धों का एक शून्यवाद है। नागार्जुन ने उसकी प्रस्तावना की है। और नागार्जुन ने कहा है कि सब कुछ शून्य है। यह भी भूल है। यह आखिरी भूल है, लेकिन भूल है। क्योंकि शून्य बचा। लेकिन तब शून्य भी एक आब्जेक्ट बन गया। मैं शून्य को देख रहा हूं। निश्चित ही, मैं शून्य भी नहीं हो सकता । जो भी मुझे दिखाई पड़ जाता है, वह मैं नहीं हूं। मैं तो वह हूं, जिसको दिखाई पड़ता है। इसलिए पीछे-पीछे सरकते जाना है। एक घड़ी ऐसी आती है, जब शून्य से भी मैं अपने को अलग कर लेता हूं। शून्य दिखाई पड़ता है, तब ध्यान की अवस्था है। कुछ लोग ध्यान में ही रुक जाते हैं; तो शून्य को पकड़ लेते हैं। जब शून्य को भी कोई छोड़ देता है, शून्य को छोड़ते ही सारा आयाम बदल जाता है । फिर कुछ भी नहीं बचता। संसार तो खो गया, विचार खो गए, शून्य भी खो गया । फिर कुछ भी नहीं बचता। फिर सिर्फ जानने वाला ही बच रहता है। शून्य तक ध्यान है । और जब शून्य भी खो जाता है, तो समाधि है । जब शून्य भी नहीं बचता, सिर्फ मैं ही बच रहता हूं, सिर्फ जानने वाला ! ऐसा समझें कि दीया जलता है। सिर्फ प्रकाश रह जाता है। कोई प्रकाशित चीज नहीं रह जाती। किसी चीज पर प्रकाश नहीं पड़ता। सिर्फ प्रकाश रह जाता है। सिर्फ जानना रह जाता है और जानने को कोई भी चीज नहीं बचती, ऐसी अवस्था का नाम समाधि है। यह समाधि ही परम ब्रह्म का द्वार है। तो कृष्ण कहते हैं, जो इस भेद को तथा विकारयुक्त प्रकृति से छूटने के उपाय को – यही उपाय है— ज्ञान - नेत्रों द्वारा तत्व से जानते हैं...। लेकिन शब्द से तो जान सकते हैं आप। मैंने कहा; आपने सुना; और एक अर्थ में आपने जान भी लिया। पर यह जानना काम नहीं आएगा। यह तो केवल व्याख्या हुई। यह तो केवल विश्लेषण हुआ। यह तो केवल शब्दों के द्वारा प्रत्यय की पकड़ हुई। लेकिन ज्ञान-नेत्रों के द्वारा जो तत्व से जान लेता है, ऐसा आपका अनुभव बन जाए। यह तो आप प्रयोग करेंगे, तो अनुभव बनेगा। यह तो आप अपने भीतर उतरते जाएंगे और काटते चले जाएंगे क्षेत्र को, ताकि क्षेत्रज्ञ उसकी शुद्धतम स्थिति में अनुभव में आ जाए... । क्षेत्र से मिश्रित होने के कारण वह अनुभव में नहीं आता। तो इलिमिनेट करना है, काटना है, क्षेत्र को छोड़ते जाना है, हटाते जाना है । और उस घड़ी को ले आना है भीतर, जहां कि मैं | ही बचा अकेला; कोई भी न बचा। सिर्फ मेरे जानने की शुद्ध क्षमता रह गई, केवल ज्ञान रह गया। तो जिस दिन आप अपने ज्ञान नेत्रों से... । स्मृति को आप ज्ञान मत समझ लेना । समझ ली कोई बात, | इसको आप अनुभव मत समझ लेना। बिलकुल अकल में आ गई, तो भी आप यह मत समझ लेना कि आप में आ गई। बुद्धि में आ जाना तो बहुत आसान है। क्योंकि साधारणतया जो सोच-समझ सकता है, वह भी समझ लेगा कि बात ठीक है, कि जो मुझे दिखाई पड़ता है, वह मैं कैसे हो सकता हूं। मैं तो वही होऊंगा, जिसको दिखाई पड़ता है। यह तो बात सीधी गणित की है। यह तो तर्क की पकड़ में आ जाती है। 396 यह मेरा हाथ है, इससे मैं जो भी चीज पकड़ लूं, एक बात पक्की है कि वह मेरा हाथ नहीं होगा। जो भी चीज इससे मैं पकडूंगा, वह कुछ और होगी। इसी हाथ को इसी हाथ से पकड़ने का कोई उपाय नहीं है। आप एक चमीटे से चीजें पकड़ लेते हैं। दुनियाभर की चीजें पकड़ सकते हैं। सिर्फ उसी चमीटे को नहीं पकड़ सकते उसी चमीटे से । दूसरे से पकड़ सकते हैं। वह सवाल नहीं है। लेकिन उसी चमीटे से आप सब चीजें पकड़ लेते हैं। यह बड़ी मुश्किल की बात है। यह दुनिया बड़ी अजीब है। जो चमीटा सभी चीजों को पकड़ | लेता है, वह भी अपने को पकड़ने में असमर्थ है। तो आप चमीटे में कुछ भी पकड़े हों, एक बात पक्की है कि चमीटा नहीं होगा वह ; वही चमीटा नहीं होगा; कुछ और होगा। जब सब पकड़ छूट जाए,

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