Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 417
________________ 0 अकस्मात विस्फोट की पूर्व-तैयारी डालते हैं। छः वर्ष बाद निरंजना नदी के किनारे वे वृक्ष के नीचे भीतर कोई वासना नहीं थी। आज उन्हें यह भी खयाल नहीं था कि थककर बैठे हैं। यह थकान बड़ी गहरी है। एक थकान तो महलों | उठकर कहां जाऊं। उठकर क्या करूं। उठने का भी क्या प्रयोजन की थी कि महल व्यर्थ हो गए थे। महल तो व्यर्थ हो गए थे, क्योंकि | | है। आज कोई बात ही बाकी न रही थी! वे थे; आखिरी डूबता हुआ महलों में कोई भविष्य नहीं था। तारा था; सुबह का सन्नाटा था; निरंजना नदी का तट था। और बुद्ध इसे थोड़ा समझें बारीक है। महलों में कोई भविष्य नहीं था। को ज्ञान उपलब्ध हो गया। सब था पास में, आगे कोई आशा नहीं थी। जब उन्होंने महल छोड़े, | जो साधना से न मिला, दौड़कर न मिला, वह उस सुबह रुक तो आशा फिर बंध गई; भविष्य खुला हो गया। अब मोक्ष, जाने से मिल गया। कुछ किया नहीं, और मिल गया। कुछ कर नहीं परमात्मा, आत्मा, शांति, आनंद, इनके भविष्य की मंजिलें बन | रहे थे उस क्षण में। क्या हुआ? उस क्षण में वे साक्षी हो गए। जब गईं। अब वे फिर दौड़ने लगे। वासना ने फिर गति पकड ली। अब | कोई कर्ता नहीं होता, तो साक्षी हो जाता है। और जब तक कोई कर्ता वे साधना कर रहे थे, लेकिन वासना जग गई। क्योंकि वासना | होता है, तब तक साक्षी नहीं हो पाता। उस क्षण वे देखने में समर्थ भविष्य के कारण जगती है। वासना है, मेरे और भविष्य के बीच | हो गए। कुछ करने को नहीं था, इसलिए करने की कोई वासना मन जोड़। अब वे फिर दौड़ने लगे। | में नहीं थी। कोई द्वंद्व, कोई तनाव, कोई तरंग, कुछ भी नहीं था। ये छः वर्ष, तपश्चर्या के वर्ष, वासना के वर्ष थे। मोक्ष पाना था। | मन बिलकुल शून्य था, जैसे नदी में कोई लहर न हो। इस लहरहीन और आज मिल नहीं सकता, भविष्य में था। इसलिए सब कठोर | अवस्था में परम आनंद उनके ऊपर बरस गया। उपाय किए, लेकिन मोक्ष नहीं मिला। क्योंकि मोक्ष तो तभी मिलता शांत होते ही आनंद बरस जाता है। मौन होते ही आनंद बरस है, जब दौड़ सब समाप्त हो जाती है। वह भीतर का शून्य तो तभी | जाता है। रुकते ही मंजिल पास आ जाती है। दौड़ते हैं, मंजिल दूर उपलब्ध होता है, या पूर्ण तभी उपलब्ध होता है, जब सब वासना | जाती है। रुकते हैं, मंजिल पास आ जाती है। गिर जाती है। यह कहना ठीक नहीं है कि रुकते हैं, मंजिल पास आ जाती है। यह भी वासना थी कि ईश्वर को पालं. सत्य को पा लं। जो रुकते ही आप पाते हैं कि आप ही मंजिल हैं। कहीं जाने की कोई चीज भी भविष्य की मांग करती है, वह वासना है। ऐसा समझ लें जरूरत न थी। जा रहे थे, इसलिए चूक रहे थे। खोज रहे थे, कि जिस विचार के लिए भी भविष्य की जरूरत है, वह वासना है। | इसलिए खो रहे थे। रुक गए, और पा लिया। तो बुद्ध उस दिन थक गए। यह थकान दोहरी थी। महल बेकार हो गए। अब साधना भी बेकार हो गई। अब वे वृक्ष के नीचे थककर बैठे थे। उस रात उनको लगा, अब करने को कुछ भी नहीं बचा। | एक आखिरी प्रश्न। एक मित्र ने पूछा है कि क्या महल जान लिए। साधना की पद्धतियां जान लीं। कहीं कुछ पाने | | बिना साधना किए, अकस्मात आत्म-साक्षात्कार नहीं को नहीं है। यह थकान बड़ी गहरी उतर गई, कहीं कुछ पाने को नहीं हो सकता? है। इस विचार ने कि कहीं कुछ पाने को नहीं है, स्वभावतः दूसरे विचार को भी जन्म दिया कि कुछ करने को नहीं है। इसे थोड़ा समझ लें। जब कुछ पाने को नहीं है, तो करने को क्या कठिन है सवाल, लेकिन जो मैं अभी कह रहा था, उससे बचता है? जब तक पाने को है, तब तक करने को बचता है। बुद्ध पा जोड़कर समझेंगे तो आसान हो जाएगा। को लगा कि अब कुछ न पाने को है, न कुछ करने को है। वे उस क्या अकस्मात आत्म-साक्षात्कार नहीं हो सकता? रात खाली बैठे रह गए उस वृक्ष के नीचे। नींद कब आ गई, उन्हें पहली तो बात, जब भी आत्म-साक्षात्कार होता है, तो पता नहीं। | अकस्मात ही होता है। जब भी आत्मा का अनुभव होता है, तो सुबह जब रात का आखिरी तारा डूबता था, तब उनकी आंखें | | अकस्मात ही होता है। लेकिन इसका मतलब आप यह मत समझना खुलीं। आज कुछ भी करने को नहीं था। न महल, न संसार, न कि उसके लिए कुछ भी करना नहीं पड़ता है। आपके करने से नहीं मोक्ष, न आत्मा, कुछ भी करने को नहीं था। उनकी आंखें खुली। होता, लेकिन आपका करना जरूरी है। |391|

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