Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 404
________________ 0 गीता दर्शन भाग-60 पाते हुए मालूम होते हो। अगर तुम बुरा करते हो, तो तुम बुरे के | | आदर देते हैं, सम्मान करते हैं। लेकिन जब आप नाटक छोड़कर साथ तादात्म्य बना लेते हो और दुख पाते हो। अगर तुम शुभ करते घर आते हैं, तो न आप राम होते हैं, न रावण होते हैं। न तो रावण हो, तो शुभ के साथ तादात्म्य बना लेते हो और सुख पाते हो। का होना आपको छूता है, न राम का होना आपको छूता है। लेकिन सुख-दुख दोनों तुम्हारी भ्रांतियां हैं। वह जो भीतर छिपा ___ लेकिन कभी-कभी खतरा हो सकता है। कभी-कभी अभिनय है, वह न सुख पाता है, न दुख पाता है। वह जो भीतर छिपा है, | भी छू सकता है। अगर आप अपने को एक समझ लें। अगर आप वह सदा एकरस अपने में ही है। न तो वह दुख की तरफ डोलता यह समझ लें कि मैंने इतने दिन तक राम का पार्ट किया, तो अब है, न सुख की तरफ डोलता है। गांव के लोगों को मुझे राम समझना चाहिए। तो फिर झंझट हो वह भीतर कौन है तुम्हारे भीतर छिपा हुआ, उसकी खोज ही | सकती है। अध्यात्म है। एक ऐसे बिंद को स्वयं के भीतर पा लेना. जो सभी ऐसा हुआ, अमेरिका में लिंकन का एक आदमी ने पार्ट किया चीजों से अस्पर्शित है। | एक साल तक। क्योंकि लिंकन की कोई शताब्दी मनाई जाती थी एक गाड़ी चलती है। गाड़ी का चाक चलता है, हजारों मील की | | और उसकी शक्ल लिंकन से मिलती-जुलती थी, तो अमेरिका के यात्रा करता है। लेकिन गाड़ी के चाक के बीच में एक कील है, जो | सभी बड़े नगरों में उसे लिंकन का पार्ट करने के लिए जाना पड़ा। बिलकुल नहीं चलती, जो खड़ी ही रहती है। चाक चलता चला | एक सालभर तक वह लिंकन की तरह चलता, लिंकन की छड़ी हाथ जाता है। चाक अच्छे रास्तों पर चलता है, बुरे रास्तों पर चलता है। | में रखता, लिंकन के कपड़े पहनता, लिंकन की तरह हकलाता, चाक सुंदर और असुंदर रास्तों पर चलता है। चाक सपाट राजपथों | लिंकन की तरह बोलता, सब लिंकन की तरह करता। । पर चलता है, गंदगी-कीचड़ से भरे हुए जंगली रास्तों पर चलता सालभर लंबा वक्त था। वह आदमी भूल गया। सालभर के बाद है। वह जो कील है चाक के बीच में खड़ी, वह चलती ही नहीं; वह | जब वह घर आया, तो वह सीधा न चल सके, जैसा वह पहले खड़ी ही रहती है। चलता रहा था। कोशिश करे, तो थोड़ी देर सीधा चले, नहीं तो फिर ठीक वैसे ही तुम्हारा मन सुख में चलता है, दुख में चलता है; | | वह लिंकन की तरह चलने लगे। बोले भी, तो लिंकन की तरह तुम्हारा शरीर कष्ट में चलता है, सुविधा में चलता है; लेकिन भीतर | बोले। जहां लिंकन अटकता था, वहीं वह भी अटके। एक कील है चैतन्य की, वह खड़ी ही रहती है, वह चलती ही नहीं। घर के लोगों ने कहा कि अब छोड़ो भी; अब बात खतम हो गई। अगर तुम शरीर से अपने को एक समझ लेते हो, तो बहुत तरह | लेकिन एक साल का नशा उस पर ऐसा छा गया-जगह-जगह के कष्ट तुम्हारे दुख का कारण बन जाते हैं। अगर तुम मन से | सम्मान, स्वागत, सत्कार–कि उस आदमी ने कहा, क्या छोड़ो! अपने को एक समझ लेते हो, तो बहत तरह की मानसिक व्यथाएं, मैं अब्राहम लिंकन हं। तम किस भ्रांति में पड़े हो? लोगों ने समझा, चिंताएं तुम्हें घेर लेती हैं; तुम उनसे घिर जाते हो। शरीर से अलग | वह मजाक कर रहा है थोड़े दिन। लेकिन वह मजाक नहीं कर रहा कर लो, शरीर में कष्ट होते रहेंगे, लेकिन तुम दुखी नहीं। मन से | था। वह अब्राहम लिंकन हो ही गया था। अलग कर लो, भावों के तूफान चलते रहेंगे, लेकिन तुम दूर खड़े उसे बहुत समझाया-बुझाया। मित्रों ने कहा कि तुम पागल तो उनको देखते रहोगे। | नहीं हो गए हो? लेकिन उसे पक्का भरोसा आ गया था। सालभर शरीर और मन दोनों से पार खड़ा हो जाता है जो, उसे पता | | लंबा वक्त था। उसे जितना लोगों ने समझाया, उसकी मजबूती चलता है कि यहां तो कभी भी कुछ नहीं हुआ। यहां तो सदा ही सब बढ़ती चली गई। वह लोगों से कहने लगा, तुम पागल तो नहीं हो वैसा का वैसा है। जैसा अगर सृष्टि का कोई पहला क्षण रहा होगा, | गए हो? मैं लिंकन हूं। जितना ही लोगों ने कहा कि तुम नहीं हो, तो उस दिन जितनी शुद्ध थी चेतना, उतनी ही शुद्ध आज भी है। | उतनी ही उसकी जिद्द बढ़ती चली गई। फिर तो यहां तक हालत __इसे हम ऐसा समझें कि आप एक नाटक में काम करते हैं। रावण | पहुंच गई कि मनोवैज्ञानिकों के पास ले जाकर इलाज करवाना पड़ा। बन गए हैं। बड़े बुरे काम करने पड़ते हैं। सीता चुरानी पड़ती है। __तो मनोवैज्ञानिक ने कहा कि यह आदमी कितना ही बोल रहा हो, हत्याएं करनी पड़ती हैं। युद्ध करना पड़ता है। या राम बन गए हैं। लेकिन भीतर तो यह गहरे में तो जानता ही होगा कि मैं लिंकन नहीं बड़े अच्छे काम करते हैं। बड़े आदर्श, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। लोग हूं। तो अमेरिका में उन्होंने लाइ डिटेक्टर एक छोटी-सी मशीन 378

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