Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 372
________________ ॐ गीता दर्शन भाग-60 यह सिर्फ पुनरुक्ति नहीं है। यह एक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया को | हैं; पुराने खो जाते हैं। किताब का पूरा प्रयोजन बदल जाता है। समझ लेना चाहिए, नहीं तो पुनरुक्ति समझकर आदमी सोचता है। | किताब का पूरा अर्थ बदल जाता है। कि क्या जरूरत! गीता को छांटकर एक पन्ने में छापा जा सकता है। - इसलिए हमने इस मुल्क में पाठ पर बहुत जोर दिया, पढ़ने पर मतलब की बातें उतने में आ जाएंगी, क्योंकि उन्हीं-उन्हीं बातों को | कम। पढ़ने का मतलब एक दफा एक किताब पढ़ ली, खतम हो वे बार-बार दोहराए चले जा रहे हैं। गया। पाठ का मतलब है, एक किताब को पढ़ते ही जाना है मतलब की बातें तो उसमें आ जाएंगी, लेकिन वे मुर्दा होंगी और | जीवनभर। रोज नियमित पढ़ते जाना है। उनका कोई परिणाम न होगा। कई बातें समझ लेनी जरूरी हैं। | लेकिन आप अगर मुर्दे की तरह पढ़ें, तो कोई सार नहीं है। पढ़ने एक, जब कृष्ण उन्हीं बातों को दुबारा दोहराते हैं, तब आपको में इतना बोध होना चाहिए कि आप में जो फर्क हुआ है, उस फर्क पता नहीं कि शब्द भला वही हों, प्रयोजन भिन्न हैं। और प्रयोजन | | के कारण जो आप पढ़ रहे हैं, उसमें फर्क पड़ रहा है कि नहीं! तो इसलिए भिन्न हैं कि इतना समझ लेने के बाद अर्जुन भिन्न हो गया पाठ है। है। जो बात उन्होंने शुरू में कही थी अर्जुन से, वही जब वे बहुत ___ गीता कल भी पढ़ी थी, आज भी पढ़ी, कल भी पढ़ेंगे, अगले. देर समझाने के बाद फिर से कहते हैं, तो अर्जुन अब वही नहीं है। वर्ष भी पढ़ेंगे, पढ़ते जाएंगे। जब बच्चे थे, तब पढ़ी थी; जब बूढ़े इस बीच उसकी समझ बढ़ी है, उसकी प्रज्ञा निखरी है। अब यही होंगे, तब पढ़ेंगे। लेकिन बूढ़ा अगर सच में ही विकसित हुआ हो, शब्द दूसरा अर्थ ले आएंगे। प्रौढ़ हुआ हो, सिर्फ शरीर की उम्र न बढ़ी हो, भीतर चेतना ने भी आप अगर इसकी परीक्षा करना चाहें, तो ऐसा करें, कोई एक | अनुभव का रस लिया हो, जागृति आई हो, पुरुष स्थापित हुआ हो, किताब चुन लें जो आपको पसंद हो। उसको इस वर्ष पढ़ें और तो गीता जो बुढ़ापे में पढ़ी जाएगी, उसके अर्थ बड़े और हो जाएंगे। अंडरलाइन कर दें। जो-जो आपको अच्छा लगे उसमें, उसको - तो कृष्ण जब बार-बार दोहराते हैं, तो वह अर्जुन जितना बदलता लाल स्याही से निशान लगा दें। और जो-जो आपको बुरा लगे, | | है, उस हिसाब से दोहराते हैं। वे उन्हीं शब्दों को दोहरा रहे हैं, जो उसको नीली स्याही से निशान लगा दें। और जो-जो आपको उपेक्षा | | उन्होंने पहले भी कहे थे। लेकिन उनका अर्थ अर्जुन के लिए अब योग्य लगे, उसको काली स्याही से निशान लगा दें। दूसरा है। सालभर किताब को बंद करके रख दें। सालभर बाद फिर खोलें, दूसरी बात। जो भी महत्वपूर्ण है, उसे बार-बार चोट करना फिर से पढ़ें। अब जो पसंद आए उसको लाल स्याही से निशान | जरूरी है। क्योंकि आपका मन इतना मुश्किल में पड़ा है, सुनता ही लगाएं। आप हैरान हो जाएंगे। जो बात पिछले साल इसी किताब | | नहीं; उसमें कुछ प्रवेश नहीं करता। उसमें बार-बार चोट की में आपको पसंद नहीं पड़ी थीं, वे अब पसंद पड़ती हैं। और जो बात | | जरूरत है। उसमें हथौड़ी की तरह हैमरिंग की जरूरत है। तो जो पसंद पड़ी थी, वह अब पसंद नहीं पड़ती। जिसकी आपने उपेक्षा | मूल्यवान है, जैसे कोई गीत की कड़ी दोहरती है, ऐसा जो मूल्यवान की थी पिछले साल, इस बार बहुत महत्वपूर्ण मालूम हो रही है। है, कृष्ण उसको फिर से दोहराते हैं। वे यह कह रहे हैं कि फिर से और जिसको आपने असाधारण समझा था, वह साधारण हो गई | | एक चोट करते हैं। और कोई नहीं जानता, किस कोमल क्षण में वह है। जिसको आपने नापसंद किया था, उसमें से भी कुछ पसंद आया |चोट काम कर जाएगी और कील भीतर सरक जाएगी। इसलिए है। और जिसको आपने पसंद किया था. उसमें से बहत कछ बहुत बार दोहराते हैं, बहुत बार चोट करते हैं। नापसंदगी में डाल देने योग्य है। किताब वही है, आप बदल गए। | इसलिए भी बार-बार दोहराते हैं कि जीवन का जो सत्य है, वह और अगर सालभर बाद आपको सब वैसा ही लगे, जैसा | | तो एक ही है। उसको कहने के ढंग कितने ही हों, जो कहना चाहते सालभर पहले लगा था, तो समझना कि आपकी बुद्धि सालभर | | हैं, वह तो एक बहुत छोटी-सी बात है। उसे तो एक शब्द में भी पहले ही कुंठित हो गई है; बदल नहीं रही है; मर गई है। उसमें कोई | कहा जा सकता है। लेकिन एक शब्द में आप न समझ सकेंगे। बहाव नहीं रहा है। | इसलिए बहुत शब्दों में कहते हैं। बहुत फैलाव करते हैं। शायद इस सालभर बाद फिर उसी किताब को पढ़ना, आप चकित होंगे, | बहाने समझ जाएं। इस बहाने न समझें, तो दूसरे बहाने समझ नए शब्द अर्थपूर्ण हो जाते हैं; नए वाक्य उभरकर सामने आ जाते जाएं। दूसरे बहाने न समझें, तो तीसरा सही। बहुत रास्ते खोजते हैं, बहतका 346

Loading...

Page Navigation
1 ... 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432