Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 378
________________ गीता दर्शन भाग-6 से उपाय हो सकता है, इलाज हो सकता है। बीमारी को झुठलाना खतरनाक है। क्योंकि बीमारी झुठलाने से मिटती नहीं, भीतर बढ़ती चली जाती है। लेकिन अनेक बीमार ऐसे हैं, जो इस डर से कि कहीं यह पता न चल जाए कि हम बीमार हैं, अपनी बीमारी को छिपाए रखते हैं। अपने घावों को ढांक लेते हैं फूलों से, सुंदर वस्त्रों से, सुंदर शब्दों और अपने को भुलाए रखते हैं। लेकिन धोखा वे किसी और को नहीं दे रहे हैं। धोखा वे अपने को ही दे रहे हैं। घाव भीतर बढ़ते ही चले जाएंगे। पागलपन ऐसे मिटेगा नहीं, गहन हो जाएगा। और आज नहीं कल उसका विस्फोट हो जाएगा। अध्यात्म की तरफ उत्सुकता चिकित्सा की उत्सुकता है । और उचित है कि आप पहचान लें कि अगर दुखी हैं, तो दुखी होने का कारण है। उस कारण को मिटाया जा सकता है। उस कारण को मिटाने के लिए उपाय हैं। उन उपायों का प्रयोग किया जाए, तो चित्त स्वस्थ हो जाता है। आप अपनी फिक्र करें; दूसरे क्या कहते हैं, इसकी बहुत चिंता न करें। आप अपनी चिंता करें कि आपके भीतर बेचैनी है, संताप है, संत्रस्तता है, दुख है, विषाद है, और आप भीतर उबल रहे हैं आग से और कहीं कोई छाया नहीं जीवन में, कहीं कोई विश्राम का स्थल नहीं है ! तो फिर भय न करें। अध्यात्म आपके जीवन में छाया बन सकता है, और योग आपके जीवन में शांति की वर्षा कर सकता है। अगर प्यासे हैं, उस तरफ सरोवर है। और प्यासे हैं, सरोवर की तरफ जाएं। सिर्फ बुद्ध या कृष्ण जैसे व्यक्तियों को योग की तरफ जाने की जरूरत नहीं है, क्योंकि योग से वे गुजर चुके हैं। आपको तो जरूरत है ही। आपको तो जाना ही होगा। एक जन्म आप झुठला सकते हैं, दूसरे जन्म में जाना होगा। आप अनेक जन्मों तक झुठला सकते हैं, लेकिन बिना जाए कोई उपाय नहीं है । और जब तक कोई अपने भीतर के आत्यंतिक केंद्र को अनुभव न कर ले, और जीवन के परम स्रोत में न डूब जाए, तब तक विक्षिप्तता बनी ही रहती है। दो शब्द हैं। एक है विक्षिप्तता और एक है विमुक्तता । मन का होना ही विक्षिप्तता है। ऐसा नहीं है कि कोई-कोई मन पागल होते हैं; मन का स्वभाव पागलपन है। मन का अर्थ है, मैडनेस | वह पागलपन है। और जब कोई मन से मुक्त होता है, तो स्वस्थ होता है, तो विमुक्त होता है। आमतौर से हम सोचते हैं कि किसी का मन खराब है और किसी का मन अच्छा है। यह जानकर आपको हैरानी होगी, योग की दृष्टि से मन का होना ही खराब है। कोई अच्छा मन नहीं होता। मन होता ही रोग है । कोई अच्छा रोग नहीं होता; रोग बुरा ही होता है। जैसे हम अगर कहें, अभी तूफान था सागर में और अब तूफान शांत हो गया है। तो आप मुझसे पूछ सकते हैं कि शांत तूफान कहां है ? तो मैं कहूंगा, शांत तूफान का अर्थ ही यह होता है कि अब तूफान नहीं है। शांत तूफान जैसी कोई चीज नहीं होती। शांत तूफान का अर्थ ही होता है कि तूफान अब नहीं है। तूफान तो जब भी होता है, तो अशांत ही होता है। | ठीक ऐसे ही अगर आप पूछें कि शांत मन क्या है, तो मैं आपसे कहूंगा कि शांत मन जैसी कोई चीज होती ही नहीं। मन तो जब भी होता है, तो अशांत ही होता है। शांत मन का अर्थ है कि मन रहा ही नहीं। मन और अशांति पर्यायवाची हैं। उन दोनों का एक ही मतलब है। भाषाकोश में नहीं; भाषाकोश में तो मन का अलग अर्थ है और अशांति का अलग अर्थ है। लेकिन जीवन के कोश में मन और अशांति एक ही चीज के दो नाम हैं। और शांति और अमन एक ही चीज के दो नाम हैं। नो माइंड, अमन । जब तक आपके पास मन है, आप विक्षिप्त रहेंगे ही। मन भीतर पागल की तरह चलता ही रहेगा। और अगर आपको भरोसा न हो, तो एक छोटा-सा प्रयोग करना शुरू करें। अपने परिवार को या अपने मित्रों को लेकर बैठ जाएं। एक घंटे दरवाजा बंद कर लें। अपने निकटतम दस-पांच मित्रों को लेकर बैठ जाएं, और एक छोटा-सा प्रयोग करें। आपके भीतर जो चलता हो, उसको जोर से बोलें। जो भी भीतर चलता हो, जिसको आप मन कहते हैं, उसे जोर से बोलते जाएं - ईमानदारी से, उसमें बदलाहट न करें। इसकी फिक्र न करें कि लोग सुनकर क्या कहेंगे। एक छोटा-सा खेल है। इसका उपयोग करें। | 352 आपको बड़ा डर लगेगा कि यह जो भीतर धीमे-धीमे चल रहा है, इसको जोर से कहूं ? पत्नी क्या सोचेगी! बेटा क्या सोचेगा ! मित्र क्या सोचेंगे! लेकिन अगर सच में हिम्मत हो, तो यह प्रयोग करने जैसा है। फिर एक-एक व्यक्ति करे; पंद्रह-पंद्रह मिनट एक-एक व्यक्ति बोले । जो भी उसके भीतर हो, उसको जोर से बोलता जाए। आप एक घंटेभर के प्रयोग के बाद पूरा कमरा अनुभव करेगा कि हम सब पागल हैं।

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