Book Title: Gita Darshan Part 06
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 326
________________ ॐ गीता दर्शन भाग-60 इसी संदर्भ में एक मित्र ने और पूछा है कि स्लेटर ने और विश्राम अनुभव होता है। ध्यान जो लोग करते हैं, जब वे ध्यान चूहे के मस्तिष्क में इलेक्ट्रोड्स डालकर उसके की अवस्था में हैं, तब यह यंत्र लगा दिया जाए, तो फौरन अल्फा मस्तिष्क के विशेष तंतु कंपित करके संभोग का आनंद | की आवाज देना शुरू कर देता है। दिलाया। समाधि भी अस्तित्व से एक तरह का संभोग तो अब तो पश्चिम में वे इसकी भी जांच करने में सफल हो गए है। क्या यह संभव नहीं है कि मस्तिष्क के कोई तंतु हैं कि कौन आदमी ध्यान में है, कौन नहीं है। अब आप झूठा दावा समाधिस्थ अवस्था में कंपित होते हों? और इनकी नहीं कर सकते, क्योंकि यंत्र खबर देगा कि आप ध्यान में हैं या नहीं वैज्ञानिक व्यवस्था की जा सके, तो फिर साधारण हैं। आप ऐसे ही नहीं कह सकते कि मैं ध्यान में हूं। क्योंकि वह यंत्र आदमी को भी उसके समाधि वाले तंतुओं को कंपित को धोखा नहीं दिया जा सकता। आप धोखा देने की कोशिश करेंगे, करके समाधि का अनुभव दिया जा सकता है। फिर | फौरन अल्फा चली जाएगी, क्योंकि धोखा देने का खयाल भी बाधा साधना की, योग की कोई जरूरत न रहेगी। योग तो है। जरा-सा कोई विचार आएगा. यंत्र आवाज बंद कर देगा। जैसे कहता है कि समाधि को उपलब्ध करने वाला सहस्रार ही विचार बंद होंगे, यंत्र आवाज देने लगेगा। चक्र तक मस्तिष्क में छिपा हुआ है! इस यंत्र पर काफी काम चल रहा है। लेकिन इस यंत्र से जो पैदा होता है, वह भी यात्रारहित मंजिल है। और इसलिए एक बहुत मजे की बात खयाल में वहां भी आनी शुरू हो गई है कि इस श्चित ही, स्लेटर जैसे मनोवैज्ञानिकों का यही खयाल | यंत्र से भी अल्फा पैदा हो जाती है और ध्यान करने वालों को भी D1 है कि समाधि भी यंत्रों के द्वारा पैदा की जा सकती है। अल्फा पैदा होती है। लेकिन ध्यान करने वाला कहता है, परम न केवल खयाल है, बल्कि यंत्र भी निर्मित हो गए हैं। | आनंद मुझे मिल रहा है। और यह अल्फा, यंत्र से पैदा हुआ वाला न केवल यंत्र निर्मित हो गए हैं, हजारों-लाखों लोग पश्चिम में आदमी कहता है, मुझे थोड़ी शांति मालूम पड़ रही है। दोनों के यंत्रों का उपयोग भी कर रहे हैं। कोई हजार रुपए की कीमत का वक्तव्य में बुनियादी भेद है। यंत्र है। उस यंत्र से आप मस्तिष्क में तार जोड़ देते हैं, यंत्र को ___ ध्यान करने वाला कहता है, मुझे परम आनंद मिल रहा है। और चला देते हैं और यंत्र आपके मस्तिष्क के भीतर की तरंगों की | यंत्र दोनों के बाबत एक ही खबर दे रहा है कि अल्फा! यंत्र में कोई खबर देने लगता है। फर्क नहीं है। जो समाधि का प्रयोग कर के पहुंचा है उसके बाबत, एक खास तरंग, जिसको पश्चिम में वे अल्फा कहते हैं, अल्फा और जो केवल मशीन के साथ तारतम्य बिठाया है उसके बाबत, यंत्र तरंग में आदमी ध्यान की अवस्था में पहुंच जाता है। तो यंत्र खबर एक-सी खबर देता है। लेकिन मशीन से जिसने सीखा है, वह कहता देने लगता है कि आपमें कब अल्फा पैदा होती है। और जैसे ही है, मुझे थोड़ी शांति मालूम पड़ती है। और जो ध्यान से आया है, वह अल्फा पैदा होती है, यंत्र आवाज करता है और आप समझ जाते | | कहता है, मझे आनंद मालम पड़ता है। तब बड़ी कठिनाई है। हैं कि अल्फा तरंग पैदा हो गई। अब इसी तरंग में आपको ठहरे तब अभी विचारकों को संदेह पैदा होने लगा है कि यंत्र से जो रहना है। चीज पैदा हो रही है, वह शायद बाह्य रूप से एक-सी है, लेकिन ___ यंत्र की सहायता से आप थोड़े दिन में ठहरना सीख जाते हैं। | भीतरी हिस्से पर भिन्न है। क्योंकि जिस आदमी ने तीस साल ध्यान बहुत कठिन नहीं है। दो-चार दिन में आप ठहरना सीख जाते हैं। किया है, वह कहता है, मुझे परम आनंद की, परम ब्रह्म की क्योंकि आपको अंदाज हो जाता है; यंत्र खबर देता है कि ठीक यही अनुभूति हो रही है। और यह मशीन से तो तीन महीने में उतनी चीज अल्फा है। क्योंकि यंत्र आवाज करता है और आप पहचान | स्थिति पैदा हो जाएगी, जितनी बुद्ध को वर्षों में पैदा हुई है। महावीर जाते हैं कि अल्फा भीतर पैदा हो रही है। बस, अब इसी तरंग में | को वर्षों में वर्षों में भी कहना ठीक नहीं, जन्मों में पैदा हुई। उतना रुक जाना है। एक दो-चार दिन के अभ्यास से...। तो तीन महीने में यह यंत्र पैदा कर देगा। मेरे पास वह यंत्र है। इधर मैं उस पर प्रयोग किया हूं। दो-चार लेकिन जिन लोगों में तीन महीने में इस यंत्र ने वह हालत पैदा दिन के अभ्यास से आप ध्यान अनुभव करने लगते हैं। बहुत शांति कर दी, वे बुद्ध नहीं हो जाते। न तो उनके जीवन में कोई परिवर्तन 1300

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