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जितना काम, उतना वाम
. १३ मैंने यह प्रार्थना की है। काम कम करूं तो फिर दाम अधिक क्यों लूँ ?
महाराजा रामसिंह ने कहा-अच्छा तो कागज लाओ, मैं तुम्हारे लिए आदेश लिख देता हूँ।
महाराजा ने आदेश लिखा-आज से पण्डित सदासुख को वर्तमान पारिश्रमिक से सवाया पारिश्रमिक दिया जाए, और इन्हें यह विशेष छूट दी जाती है कि जब यह कार्यालय में आना चाहें तब आयें, इनका कार्य आज से केवल बही-खाते और रजिस्टर देखने का है उसमें किसी भी प्रकार की भूल न हो। इसके अतिरिक्त अवशेष कार्य अन्य कर्मचारी करें।
इस आदेश को पढकर पण्डितजी श्रद्धा से नत हो गये। वे ज्योंही चरणस्पर्श करने के लिए आगे बढ़ना चाहते थे कि राजा साहब कोषालय से बाहर चले गये । पण्डितजी पर आकर अत्यन्त तन्मयता के साथ अपने ग्रन्थों के लेखन में लग गये। उन्होंने भगवती आराधना-सार, तत्त्वार्थसूत्र, रत्नकरण्डश्रावकाचार प्रभृति ग्रन्थों पर विराट टीकाएँ लिखीं और अन्य मौलिक साहित्य का भी सृजन किया।
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