Book Title: Gagar me Sagar
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 165
________________ १५० गागर में सागर हैं। अन्य दिनों में मैं शासन के कार्य में अत्यधिक व्यस्त होने से इबादत भी जैसे चाहिए वैसे नहीं कर पाता। किन्तु शक्रवार की रात्रि को अवकाश के क्षणों में जी भरकर इबादत करता हूँ। यह सुनते ही हजरत उमर की आँखों में से आँसू ढुलक पड़े कि मेरे राज्य में ऐसे ईमानदार और राज्यभक्त व्यक्ति हैं जो कठोर श्रम करके भी इतना पैसा नहीं लेते जिससे उनका तन ढक सके। ____काश ! आज के अधिकारीगण प्रस्तुत घटना से शिक्षा प्राप्त कर सकें तो राम-राज्य आने में किंचित मात्र भी विलम्ब नहीं हो सकता। Jain Education Intefpatronate & Personal Usev@rainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180