Book Title: Gagar me Sagar
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 177
________________ १६२ गागर में सागर हाजी मुहम्मद हूँ । अभिमान करने से तुम्हारा सारा पुण्य नष्ट हो गया है । मुहम्मद ने कहा- कोई बात नहीं, मैं साठ वर्ष तक प्रतिदिन दिन में पाँच बार नमाज पढ़ता रहा हूँ । फरिश्ते ने कहा- तुम्हारी यह बात भी सत्य है, पर तुम्हें स्मरण है न ! एक दिन बाहर से धर्मप्रेमी व्यक्ति आये थे । उनके सामने अपने आपको धर्मो सिद्ध करने के लिए अन्य दिनों की अपेक्षा उस दिन तुमने अधिक समय तक नमाज पढ़ी थी जिससे तुम्हारा वह पुण्य भी नष्ट हो गया । हाजी घबरा उठे, उनकी आँखें भर आईं। उनकी नींद खुल गई। उन्होंने उसी समय प्रतिज्ञा ग्रहण की कि अब कभी भी मैं अहंकार और प्रदर्शन न करूंगा । ☐ Jain Education Internationalte & Personal Usev@rjainelibrary.org

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